राष्ट्रवाद और भेष
कितनी अच्छी लगती है
राष्ट्रवाद की बातें ….आ..हा..
मैं तो कहता हूँ ..हो
सिर्फ़ देशहित की बातें
हो सिर्फ़ गौदान की बातें,
क्यों हो भला कन्यादान ,
पोषित हो जिससे अभिमान,
वे ही बातें हो.
मयूर पंख सहेजें,
सिर्फ़ कान्हा सी बातें हो.
भारत फिर से विश्वगुरु बने,
फिर सभी वो बातें हों
किस लिये हो रोजमर्रा की बातें.
कैसे पूरी हो मूलभूत जरूरी बातें.
खोज लो फिर वही तरीक़े,
सूर्य दर्शन से हों बच्चे,
मुख,भुजा, पेट,पैरों से पैदा हो वर्ण,
देह के मल से सजे गणेश,
सब कट जाये क्लेश,
जिंदा बचे न आवेश,
सबका हो समावेश,
बचे न कुछ भी शेष.
तब कहो
राष्ट्र और भेष
क्या रखा है विज्ञान में
बस करो विधान की बातें,
विधि का दमन हो
अंधभक्त का जन्म हो,
चालाक आदमी के पास डोर हो,
छद्म ओर और छोर हो,