राष्ट्रप्रेम
आओ हम उस सोन चिरैया का सबसे परिचय करवाएं
गौरवशाली भारत के वैभव का परचम फिर लहराएं।
अविच्छिन्न था देश हमारा सकल विश्व में था विख्यात
उत्तुंग हिमालय किरीट सजे रहता जिसके शीश दिन-रात।
शौर्य था जिस देश का दीपक विजय थी वर्तिका जिसकी
कोई तिमिर न रोक सका दमकती हस्ती को उसकी।
देश के वीर बांकुरों की सुनते थे शौर्य मयी गाथा
वे सुभाष वीर रणांगन में माँ भारती को टेकें माथा।
भगतसिंह चन्द्र शेखर सुभाष किस-किस का नाम गिनाऊं मैं
रानी झांसी आजाद शिवाजी सबको शीश नवाऊं मैं।
शत्रु को धूल चटाते थे ठोकर में उनके था दुश्मन
इक-इक को चुन-चुन मसल-मसल करते थे दुश्मन का मर्दन।
आजादी के मतवालों ने न देखी बरखा न आंधी
सर बांध कफन चलते थे ये थी मौत हथेली पर बांधी।
गोरे फिरंगियों को भी जिन वीरों ने धूल चटाई थी
उनकी ही प्राण आहुतियां से हमने स्वतंत्रता पाई थी।
आज स्वतंत्र भारत में उनसे न हम सब यूँ अनजान बनें
उनको शत्-शत् हम नमन करें उन पर गर्व अभिमान करें।
उत्कीर्ण हो उनका यशोगान हर भारतवासी के उर पर
हम नाज करें उन वीरों पर दे गये स्वातन्त्र्य मुकुट सिर पर।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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