रावन
शीश उसका रहा ऊँचा भी नहीं
राम आगे कभी झुका भी नहीं
हम जलाते सदैव है रावन
पर न वो अब तलक जला भी नहीं
वाटिका में पधार कर माते
पर न माँ को मिले दगा भी नहीं
लंकिनी की मिले जो छत्र छाया
पा न रावन उन्हें सका भी नहीं
हम जलाते सदैव है रावन
पर न वो अब तलक जला भी नहीं
साधु के भेष में चुरा सीते माँ
साथ भगवां के जो वफा भी नहीं
जीत अच्छाई की है बुराई पर
सत्य इस बात को भुला भी नहीं