रावण
कहने वाले का साहस देखो
सुनने वाले का धैर्य देखो
ढील दे दो बढ़ा दो लम्बी
सुन सको सौर तो सुनो
वो काटा वो काटा
काटने वाले कि खुशी का ठिकाना
कटने वाले के गम का अफ़साना
लूटने वालों की आपाधापी धक्कम पेल
जब तक डोर हाथ में थी
पतंग पूर्ण नियंत्रण में थी
डोर कटी
और पतंग बेकाबू
बेकाबू और बेलगाम होने से
मर्जी हवा की
अवरोध आने तक जीवित है
दरख़तों पर लटके अवशेष
या की पाँच दस हाथों द्वारा
टुकड़े टुकड़े किये शेष
ना तेरी ना मेरी
उतरे चेहरे दुःख और संतुष्टि
इंसान की इतनी सी तुष्टि
अँगूर खट्टे हैं
मिल जाते तो रसीले
मीठे- मीठे पीले -पीले
वैसे असल जिंदगी में
हम भी कनकौए से अलग नहीं हैं
एक दूसरे से लड़ते हैं
या लड़वाते हैं
एक होकर उड़ने का आनन्द नहीं
लेते
जिओ और जीने दो का पालन नहीं करते
प्रतिस्पर्धा टिकने की
अपना और पराया
आज नहीं तो कल
शेर को सवाशेर
घृणा द्वेष या संतुष्टि
कोई कब तक टिक पायेगा
सोचने की जरूरत नहीं
कुछ कहने की जरूरत नहीं
हमें समझना है
और हवा में देर तक टिकना है
तो हमें अपनी समझ के
दायरे को बढ़ाना होगा
इंसान को बंटते देखा
धर्म में जाति में
गिनाने बैठूंगा तो
भेद में अभेद हो जाएगा
सबसे बुरे दिन देखो
अब कवि भी बँटने लगे
कोई इकाई अव्वल हो गई
कोई कवि धुरन्धर हो गए
किसी के बोल सुन्दर हो गए
हम ठहरे गँवार
जज्बात दिल में दबा कर रह गए
अपनी एक पहचान हो
ठीक है
हम कवि हैं
हमारी कैसी होढ़
किससे होढ़
मेरे लिए तो लिखना ही गर्व की बात है
सिद्ध होता यहीं
जिंदा हममें जज़्बात हैं
इनको जिंदा ही रहने दो
विश्वास और साहस की जरूरत
हमें नहीं
भाव काफ़ी हैं
बुलन्दी छूने की चाहत नहीं
लिखते रहने की चाहत है
रावण और विभीषण को
समझना होगा
विभीषण केवल कृपा पात्र बने
और
राम के हाथों मरकर
रावण मोक्ष के अधिकारी
एक भक्त एक विकारी
किसने क्या खोया क्या पाया
ये जग जानता है
आज भी विभीषण को
घर का भेदी मानता है
भाई का विश्वास खोकर
उसे मिला क्या
युद्ध की विभीषिका से
उजड़ी लंका
भ्रातृ हन्ता कहने वाली जनता
रोम रोम रोया होगा
राजमहल कैसे सुहाया होगा
ये तो स्वयं विभीषण ही जानें
रावण आज भी दशानन है
जलकर भी जिंदा है
विभीषण को चिढ़ाने को
हर वर्ष आता है
बुराई पर अच्छाई की जीत को
अच्छे से समझाता है
हम अपने मजे की खातिर
पुतले में लगा सुतली
बड़म बड़ाम सुर फुस
जिसे जलना था जल गया
केवल पुतला जला घर गया
सोचो हम कर क्या रहे हैं
क्या जला रहे हैं
क्यों जला रहे है
हम खुद में छुपे रावण को जिंदा रख
दशहरा मना रहे
हम खुद में छुपे रावण को जिंदा रख
दशहरा मना रहे
#भवानी सिंह भूधर