रावण – विभीषण संवाद (मेरी कल्पना)
विभीषण राम का भक्त था,
यह बात रावण भी जान रहा था।
फिर क्यों रावण, विभीषण को ,
राम से मिलने दिया था।
मार सकता था वह विभीषण को,
फिर भी क्यों नहीं मारा था।
इसके पीछे भी रावण का,
एक छुपा हुआ कारण था ।
रावण बोला विभीषण से
सुन मेरे प्यारे भाई,
तुमने अपने जीवन में आजतक ,
कोई पाप नहीं किया है।
इसलिए तुमको तो ऐसे ही
मिल जाएगा, स्वर्ग-धाम
पर मैं अपना यह पाप भरा
शरीर लेकर ,
कैसे जाऊँ स्वर्ग-धाम।
तुम मेरे छोटे भाई हो।
तुम्हें ही करना होगा,
अब इसका इंतजाम।
काम बहुत बड़ा है,
पर तुम ही कर सकते हो।
मेरे मरने का भेद राम को,
तुम ही जाकर बता सकते हो।
विभीषण बोला भईया रावण,
मैं यह कैसे कर सकता हूँ।
तेरा भाई होकर मैं तेरे साथ,
विश्वासघात कैसे कर सकता हूँ!
कैसे मैं तुम्हें मरवा सकता हूँ!
रावण बोला सुन मेरे प्यारे
तुम मुझे मरवा नहीं रहा है।
मैंने जो पाप किया है,
तुम उससे मुझे मुक्ति दिला रहा है।
तुम जाओ राम के शरण में,
वहाँ जाकर मेरे सारे भेद खोलो,
तुम मेरे मरने का सारे भेद खोलोगे,
तभी जाकर मैं मर पाऊँगा।
राम से मुक्ति लेकर तभी,
मैं स्वर्ग-धाम को जा पाऊँगा।
और जो मैंने पाप किये है,
उससे मैं मुक्ति ले पाऊँगा।
कुछ लोग कहेंगे तुमको भेदी,
सुन लेना तुम मेरे भाई प्रिये।
पर राम के हाथों मुक्ति दिलाकर,
तुम मुझ पर करोगे एहसान प्रिय।
ओ मेरे भाई प्रिये।
~ अनामिका