रावण तो अब भी ज़िन्दा है !
रावण बेशक़ था विद्वान!
लेकिन पर-नारी पर उसने,
बुरी नज़र जब डाली,
उसी वक़्त उसके विनाश की,
लीला लिखी गई थी!
रामचन्द्र ने मार दिया था,
उस रावण को!
तब से उसका पुतला,
फूँक रहे हैं हम सब!
वो त्रेता था,
अब कलियुग है!
बिटिया अब तो मरे कोख में!
या दहेज के दावानल में!
मगर ज़ुबाँ से कुछ ना बोले,
ये रावण घर के जो ठहरे!!
मासूमों की बलि चढ़ती है,
रोज़ हवस के नए पुजारी,
उम्र,जाति या धर्म न देखें,
अपनी कुंठाओं के मारे,
नोच रहे अपनी जननी को!
या तेज़ाब फेंकते हैं ये!
उम्मीदों को जला रहे हैं!
सपनों के चिथड़े करते हैं!
राख़ बना कर उड़ा रहे हैं!!
और दशहरे के मेले में,
जाकर रावण जला रहे हैं!
कैसी घातक परिपाटी है?
जो रावण मर चुका,
उसी का पुतला फूँका?
मगर एक रावण ये भी है,
जो जीवित बैठा अन्तस में!
मेले में सीता को ताके,
बुरी नज़र फिर डाल रहा है,
कुंठाओं को पाल रहा है!
पुतला तो जल गया कभी का,
सचमुच रावण हवन हुआ क्या?
वो बेशक़ विद्वान है लेकिन!
रावण तो आख़िर रावण है!!
वो घर का हो या बाहर का,
मानवता तो शर्मिन्दा है!
रावण तो अब भी ज़िन्दा है!!!