रावण, तुम अमर कैसे हो गये
हे रावण, तुम अमर कैसे हो गये
तुम्हारा अंत तो सतयुग में था निश्चित
रामायण में लिखा सत्य है सबको विदित
कलियुग में वर्ष दर वर्ष अवतरित कैसा हो गये
नादान मानव हर वर्ष
तुम्हें धरती पर बुलाता
फिर गाजे बाजे के साथ
तुमको अग्निबाण से जलाता
वर्ष दर वर्ष ये परम्परा चलती रही
पर रावण, तुम्हारा कुछ ना बिगाङ सकी
जीवित रहे तुम हमारे दुष्कर्मों में
नष्ट नही होते किसी भी अग्नि में
काश, हम प्रभु राम के आदर्शों पर चल पाये
काश किसी तरह मन के रावण को भी मिटाए
तभी सही मायने में होगा रावण का अंत
तभी सही मायने में होगा दशहरा सम्पन्न
चित्रा बिष्ट
(मौलिक रचना)