रावण का मकसद, मेरी कल्पना
रावण था लंका का राजा ।
वह था बड़ा शक्तिशाली।
बुद्धि बल का अदभुत मिश्रण।
वह बड़ा था हटशालीl
जप-तप में उसकी तुलना में
इस संसार में कोई नहीं था।
वह शिव शंकर का सबसे
बड़ा परम भक्त कहलाता था।
शिव शंकर को खुश करके
वह दशासन का वर माँगा था।
पर स्वर्ग धाम को कैसे जाए,
उसके मन में एक पश्न था !
उसको पता था की उसका
जीवन पापों से भरा पड़ा है ।
और उसकी प्रजा ने भी
उसके लिए पाप बहुत किया है ।
वह था बड़ा ही बुद्धिशाली।
उसने सोच-समझ एक युक्ति निकाली।
जाके सीता को वन से हर ,
लंका मैं है रख डाला ।
उसका मकसद सीता का
अपमान करना नहीं था।
उसका मकसद तो प्रजा सहित,
स्वर्ग-धाम को जाना था।
वह जान रहा था की सीता ही
उसके स्वर्ग जाने का है मार्ग ।
इसलिए वह कर रहा था
इस तरह का कार्य।
सब लोग एक- एक कर
रावण को समझा रहे थे।
क्या हश्र होने वाला है,
यह सब मिलकर बता रहे थे।
पर रावण जान बुझकर
अनजान बना हुआ था ।
उसका मकसद कितना बड़ा है,
कहाँ बता रहा था!
वह मंद मंद उन सबकी
बातों पर मुस्कुरा रहा था,
और वह मन ही मन स्वर्ग-
धाम जाने की तैयारी कर रहा था।
राम से मुक्ति लेने के लिए ही
तो सीता को लंका लाया था ,
और सीता के जरिये उसने
राम को युद्ध के लिए ललकारा था।
उसका मकसद युद्ध को
जीतना था ही नहीं कभी भी,
वह युद्ध जीत नही सकता है राम से,
वह यह सब जान रहा था ।
उसका मकसद राम के हाथों
अपना वध करवाना था।
उनके हाथों मुक्ति लेकर
स्वर्ग – धाम को जाना था।
यह रावण के सर्वोत्तम बुद्धि
का परिणाम ही था ।
इतने पाप के बाद भी रावण
प्रजा सहित पहुंचा सीधे स्वर्ग-धाम को था।
~अनामिका