रावण आचार्य मंदोदरी वार्ता (शुद्ध गीता छंद)
शुद्ध गीता छंद 27 मात्रायें
गीतिका + लघु
मंदोदरी रावण संवाद
आचार्य पद चर्चा।
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जानकर पति देव जावें,
विप्र बन आचार्य आज।
रामदल में शत्रु जो हैं,
शीश पर गिर जाय गाज।
रोकने के टोकने के
भाव ला कर नीत प्रीत।
मयसुता कहने लगी यह,
हो सकेगी यों न जीत।
विप्र का है काम जो यज
मान का ले लाभ साध।
शत्रु का पूजन कराना,
प्राण का बन जाय ब्याध।
दे दिया है नाथ तुमने,
जो वचन वह देउ तोड़।
मत बनो आचार्य ऐसे,
जो समय दे शीश फोड़।
शीश फूटे फूट जाये,
प्राण प्यारी,जान जान ।
मिल रहा संसार भर से,
श्रेष्ठ पूजक विप्र मान।
छोड़ सकता हूँ नहीँ,
आचार्य पद निज हानि देख।
यह विधाता ने लिखा,
विद्वान बनने भाग लेख ।
जिंदगी का क्या ठिकाना,
एक दिन तो जायँ प्राण ।
छोड़ जाऊँगा धरा पर,
श्रेष्ठ होने का प्रमाण।
धन्य हो मंदोदरी ने,
सुन कहा हे प्राणनाथ।
जाति वाचक श्रेष्ठता से,
जग खडा हो जोड़ हाथ।
विप्र होकर विप्र का ही,
हानि लख दे कर्म छोड़।
रूप सुन्दर और पाये ,
कंचनी तन मायँ कोढ़
ठीक सोचा ठीक समझा,
श्रेष्ठ अपना खानदान।
धर्म का पथ कर्म का व्रत,
खूब ठानी आप ठान।
वीरता लंकेश की तो,
जानता संसार ठान ।
आज पूजें राम जी भी,
विप्र की पहचान मान।
शस्त्र लेकर हाथ में जो,
विप्र बनता सूरवीर ।
पूजते हैं शास्त्र ले जो,
विप्र छोड़े ज्ञान तीर ।
कीजिये पूजा सही पिय,
हो सदा ही विप्र याद।
दीजिये प्रभु राम जी को,
विप्र बन आशीर्वाद ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
29/12/22