रावणदहन
आज राम का रूप धर, रावण के पुतले जलाएंगे,
बारूदों की लड़ियों से, उसके विशालकाय स्वरुप को सजायेंगे।
धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा, अग्निमय वाणों से उसके हृदय को छलनी कर जाएंगे,
उसके एक अपराध के लिए, उसकी सारी अच्छाइयों को उसी अग्नि में भस्म कर आएंगे।
जिसने पशुबलि को निषिद्ध किया, उसे हृदयविहीन की संज्ञा दे जाएंगे,
जिसने नवग्रहों का घमंड तोड़ा, उसे अतिगर्वेन कह कर चिढ़ाएँगे।
शिव के उस महाभक्त से छल कर, उसके शिवलिंग की स्थापना का स्थान बदलवायेंगे,
प्रजाप्रेमी उस शासक को, निरंकुशता की पराकाष्ठा बताएँगे।
अपने परिजनों की रक्षा की उसकी प्रतिबद्धता, को उसके अहंकार के रूप में तोल आएंगे,
विजययज्ञ के उस महापंडित रावण के आशीर्वाद, को भी झूठ का आडम्बर बताएँगे।
जिसने जातिरहित रक्ष समाज की रचना की, उसे हीं बुराई का प्रतीक मान आएंगे,
उसकी एक गलती का सहारा ले, उसके सारे कर्मों को घृणित कह कर बुलाएंगे।
पर रावण द्वारा किये गए एकमात्र अपराध को, करने से स्वयं को रोक नहीं पाएंगे,
“होये वही जो राम रची रखा” इस तथ्य को विस्मृत कर, हर साल ये रावण दहन कर मुस्कुरायेंगे।
क्यों ना इस साल विजयादशमी को माँ दुर्गा को जाते-जाते, एक नया प्रण दे जाएंगे,
की अब किसी भी रजक के कहने पर, अग्निपरीक्षा ले माता सीता को वन की राह में नहीं भटकायेंगे।