राम संस्कार हैं, राम संस्कृति हैं, राम सदाचार की प्रतिमूर्ति हैं…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
पग राम के लिए ही मैं बढ़ाऊंगी,
दीप उनके ही नाम की जलाऊंगी,
राष्ट्र समूचा हुआ है राममय,
मैं राम में ही रम जाऊंगी,
राम जैसा ना हुआ है, ना कोई होगा,
मैं अपने राम में ही धुन जाऊंगी,
गीत राम की ही मैं गाऊंगी,
संगीत राम की ही मैं बजाऊंगी,
विराज रहे मेरे प्रभु, अपने अंगना में,
मैं अंगना में ही ठुमका लगाऊंगी,
राम-राम बोल के मैं झुमूंगी,
झूम-झूम कर राम की हो जाऊंगी,
राम आदर्श हैं, राम गौरव हैं,
राम भारत की सभ्यता के सौरभ हैं,
राम संस्कार हैं, राम संस्कृति हैं,
राम सदाचार की प्रतिमूर्ति हैं,
राम विश्व के ऐसे महापुरुष,
दूजा ना नाम कोई ऐसा, राम ऐसे हैं,
राम नाम ही जीवन का सब सार है,
राम नाम ही जीवन का आधार है।