राम रावण युद्ध
फिर मारेंगे आज राम रावण को,
मत बार बार उसे जीवित होने दो।
मर जाने दो जीवन के रावण को,
सत्य धर्म का फिर से स्वागत हो।
असत्य रहा बलवान सदा ही,
पग इसने बहुत ही पसारे हैं।
भ्रम में डाला है हमको सदा,
असत्य की माया से बहुत हारे हैं।
आज राम से फिर असत्य हारेगा,
इसे हार जानें दो हमेशा के लिए।
न बुझे पाप से ज्ञान केजलते दिए,
प्रण यही रावण को अब उखाड़ेगा।
रावण घृणित मनोवृत्ति है हमारी,
जो लज्जित करती हैं सीता को।
मजबूर बना लाचार करती उसको,
देवी है फिर अबला बनती नारी।
सत्य रूपी राम को मत हारने दो,
असत्य और बुराई को जला दो,
विजयादशमी बनेगी तब सार्थक,
विकारों को अब समूल ताड़ने दो।
स्वरचित एवं मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश