राम मंदिर का भूमि पूजन,5 अगस्त एक ऐतिहासिक तिथि
अयोध्या में रामजन्मभूमि पर करोड़ों भारतीयों की आस्था और आकांक्षा के प्रतीक भव्य श्री राम मन्दिर के निर्माण का शुभारंभ 5 अगस्त २०२० को होने जा रहा है। करीब पांच सदियाें के लंबे इंतजार के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्मस्थली में भव्य राम मंदिर का करोड़ों रामभक्तों का सपना पांच अगस्त को मूर्त रूप ले लेगा और इसके साथ ही धार्मिक पर्यटन के महत्वपूर्ण केन्द्र बनकर उभरे अयोध्या में विकास की एक नई गाथा का अध्याय शुरू होगा।
भारत के सांस्कृतिक इतिहास में यह पर्व स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। 5 अगस्त, 2020 को शिलान्यास न केवल मंदिर का है वरन्, एक नए युग का भी है. यह नया युग प्रभु श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप नए भारत के निर्माण का है. यह युग मानव कल्याण का है. यह युग लोककल्याण हेतु तपोमयी सेवा का है. यह युग रामराज्य का है. भाव-विभोर करने वाले इस ऐतिहासिक अवसर पर प्रत्येक देशवासी का मन प्रफुल्लित होगा, हर्षित-मुदित होगा । निश्चित ही यह मन्दिर भी श्रीराम के विराट व्यक्तित्व के अनुरूप होगा। जिससे भारतीय जनमानस पर न केवल अनूठी छाप अंकित होगी, बल्कि यह जन-जन मे सौहार्द एवं सद्भावना का माध्यम भी बनेगा, क्योंकि श्रीराम किसी धर्म का हिस्सा नहीं बल्कि मानवीयता का उदात्त चरित्र हैं। श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन त्याग, तपस्या, कत्र्तव्य और मर्यादित आचरण का उत्कृष्ट स्वरूप है।
श्री राम हम सबके आदर्श हैं। कोई भी समाज अपने आदर्श चरित्र के बिना आगे नहीं बढ़ता है। भारत के इतिहास में श्री राम जैसा विजेता कोई नहीं हुआ। उन्होंने रावण और उसके सहयोगी अनेक असुरों का वध करके न केवल भारत में शान्ति की स्थापना की बल्कि सुदूर पूर्व में आनन्द की लहर व्याप्त की। श्री राम भारत की लम्बी सभ्यता एवं संस्कृति में सर्वस्पर्शी आदर्श राष्ट्रीय या सभ्यताई चरित्र के प्रतीक और प्रेरणा दोनों थे ,हैं और रहेंगे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जनमानस की व्यापक आस्थाओं के कण-कण में विद्यमान हैं। श्रीराम किन्हीं जाति-वर्ग और धर्म विशेष से ही नहीं जुड़े हैं, वे सारी मानवता के प्रेरक हैं। उनका विस्तार दिल से दिल तक है। उनके चरित्र की सुगन्ध विश्व के हर हिस्से को प्रभावित करती है। भारतीय संस्कृति में ऐसा कोई दूसरा चरित्र नहीं है जो श्रीराम के समान मर्यादित, धीर-वीर और प्रशांत हो।
अतः भारत के लिये राम मंदिर के पुनर्निमाण से बड़ा,महत्वपूर्ण और सम्मानजनक मसला कुछ नहीं हो सकता। प्रभु श्रीराम का मंदिर निर्माण ही राष्ट्र निर्माण की पहली सीढ़ी है। इतिहास साक्षी है कि अयोध्या में श्री राम मंदिर को लेकर अब तक 76 युद्ध लड़े जा चुके हैं। सात लाख से अधिक लोगों ने श्री राम मंदिर के लिए अपने प्राणों की आहूति दी हैं। जाने कितनी बार सरजू के तट इसी श्री राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए रक्तरंजित हुए हैं। जन्मभूमि विवाद को समाप्त करने के लिए आवाज उठाने वाले मौलाना अमीर अली तथा हनुमान गढ़ी के महंत बाबा रामचरण दास को अंग्रेजों ने 18 मार्च, 1858 को अयोध्या में हजारों हिंदुओं और मुसलमानों के सामने कुबेर टीले पर फांसी दे दी गई श्री राम भक्तों और सनातन धर्म के रक्षकों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। बाबर के काल में हुए हिंदुओं की आस्था पर क्रूर प्रहार का दंश पांच सौ वर्षों तक हिंदू किसी न किसी रूप में झेलते रहे हैं, सहते रहे हैं, फिर मौन रहते श्री राम की आस्था की लौ जलाए रहे हैं। वह भी सिर्फ इसलिए कि भगवान श्री राम की जन्म भूमि पर मंदिर बनाना ही है।यहां तक बाबरी विध्वंस के पहले 8० के दशक के अंत में जिस तरह से हजारों हिंदुओं का बर्बरता पूर्वक देसी शासकों ने काल का ग्रास बनाया, उसे तो तमाम ऑन लाइन मीडिया में देखा जा सकता हैं।
शर्मनाक बात यह रही कि इन हजारों कार सेवकों को काल ग्रास बनाने के बाद भी उनमें रंज मात्र का दुख नहीं नजर आया। जिस काल खंड में हजारों कार सेवकों को बर्बरता पूर्वक मारा गया, उस कालखंड में यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे । उन्होंने कभी हजारों राम भक्तों के अकाल मारे पर अफसोस तक जाहिर नहीं किया। यहां तक कि दशकों तक नेताओं ने राम मंदिर को लेकर कटाक्ष किए और भाजपा व राम भक्तों से मंदिर के निर्माण की तारीख पूछ कर पांच सौ वर्षों से जले हिंदुओं के बदन पर नमक छिड़क कर उनका उपहास उड़ाते रहे, लेकिन राम भक्त भी अडिग रहे, ‘सौगंध राम की खाते हैं-हम मंदिर वहीं बनाएंगे।’इतिहास गवाह है कि भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया, न धर्मांतरण कराया, न लूटपाट मचाई। ऐसे में हमारे अपने आराध्यों के समुच्य सम्मान के प्रतीकों को सहेजना, प्रतिष्ठापन करना हर भारतवासी के लिये गौरव की बात है। यह भारतीय लोकतंत्र की खूबी है कि यहां हर धर्म के प्रति सम्मान है, बराबरी का दर्जा है, सभी को अपनी पूजा पद्धति को कायम रखने की छूट है।
आने वाली पीढ़ी को बताया जाना चाहिए कि किस तरह एक समाज ने पांच सौ साल संघर्ष किया और लाखों जीवन का बलिदान दिया। मरे-खपे, गिरे-उठे, कभी आगे बढ़े तो कभी पीछे हटे, मारा-मरे लेकिन लड़ना नहीं छोड़ा। विपरीत परिस्थितियों में भी जीतने, अंतिम विजय हासिल करने, समाज को जीवंत, संगठित रखने की कला सीखनी हो तो राम मंदिर आंदोलन से बड़ा कोई और उदाहरण नहीं हो सकता है।5 अगस्त 2020 की भोर निश्चित ही श्रीराम मंदिर शिलान्यास के साथ देश को एक पैगाम देगा-आदर्शों का पैगाम, चरित्र और व्यवहार का पैगाम, शांति और सद्भाव का पैगाम, आपसी सौहार्द एवं सद्भावना का पैगाम। श्रीराम मंदिर विश्व शांति एवं सौहार्द स्थल के रूप में उभरेगा क्योंकि श्रीराम का चरित्र ही ऐसा है जिससे न केवल भारत बल्कि दुनिया में शांति, अहिंसा, अयुद्ध, साम्प्रदायिक सौहार्द एवं अमन का साम्राज्य स्थापित होगा।