Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Dec 2019 · 3 min read

राम की प्रतिक्षा

#राम_की_प्रतिक्षा
_________
देवत्व व असुरत्व के इस द्वंद, वैमनस्य व अंतर्विरोध के बीच प्रकृति, अपने अधिष्ठान पुरुषोत्तम के प्रतिष्ठित अवतरण की पृष्ठभूमि रच रही है। बहुत दिनों बाद संभवतः पहली बार अयोध्यावासियों को ही नहीं वरन् समस्त भूलोकवासियों को अपनी बिछड़ी संस्कृति और समस्त जनमानस में सन्निहित प्राण – लोकरंजन सहृदय राम के स्वागत का सुअवसर मिला है।
अयोध्या सरयू तट से सुदूर अपने देश की पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण की सीमाएं आक्रांताओं के बर्बर आक्रमणों को झेलने का संताप एवं विघटन के भयानक क्रूर घातों को एक समय के लिए छुपा दी है , आज अपने राम को पाकर आकंठ प्रसन्नता में डूब रही है। प्रसन्नता की विशाल व्यापकता में शंख ,चक्र, गदा, पद्मपाणि, कौस्तुभकंठ, श्रीवत्सल, वनमाली , पीतांबर परिधान, रत्नमुकुटी , सर्वाभरणभूषित अपने आराध्य भगवान राम को निहार रही है। अपनी अंतश्चेतना में सचेष्ट भावमग्न बनी हुई है। सप्तसिंधु एवं हिमशिखर अचानक ध्यान में निमग्न हो गए हैं। सम्पूर्ण जनमानस अपने सम्मुख अचिंत्य ज्योति का आत्मसात् एवं अचिंत्य शक्ति का आलिंगन कर रहा है।
वर्षों से अपने राम के लिए प्रतिक्षारत महान देशवासी आज यही सोच रहे हैं – अतीत का सिरमौर, जगद्गुरू एवं चक्रवर्ती के अनगिनत पदों से अलंकृत अपना राष्ट्र आज इतना दयनीय क्यों हो गया है ? दासता के भयानक बेड़ियों को तोड़कर भी आज अपने राम की स्वतंत्रता की दिव्य एवं भव्य अनुभूति से वंचित क्यों है ? निश्चित रूप से सहस्त्रों अनुत्तरित प्रश्न हैं । अपने असंख्य वीरपुत्रों को खोकर भी भारतमाता सहमी नहीं है , अपने विराट स्वरुप के लिए उद्यत हो चलीं हैं।
भारतमाता ने अपने पुत्रों को ऐसा जगाया था कि वर्षों से क्रुरता का जिहादी स्तम्भ ढांचा ६ दिसम्बर १९९२ को धूल-धूसरित हो गया। सभी कारसेवकों ने मिलकर इस महान पुण्य प्रकल्प को साकार किया था , भयावह माथे के कलंक को मिटाया था , यह भारतभूमि के अस्तित्व के लिए अतिआवश्यक था।
नवनीत सुकुमार से लेकर वृद्ध , समस्त विप्र एवं सन्त समाज ने अपने असंख्य प्राणों की आहुति देकर भी राम को कहां छोड़ा है ?
९ नवम्बर २०१९ निर्णय की घड़ी नजदीक हो चली थी । भारतभूमि अपने राम के लिए सचेष्ट एवं सजग थी । आकाश स्वच्छ,निरभ्र था। वायु न अति शीतल न ही अति उष्ण । प्रकृति संतुलन में थी ।आम्र वृक्षों में मंजरी के बीच छिपी कोकिल जब-तब सुरीली तान छेड़ देती थी। सारे पक्षी विविध स्वरों से अपने राम के लिए मधुर स्वरों का उच्चार कर रहे थे। इन्हें सुनकर ऐसा लग रहा था, जैसे कि सम्पूर्ण प्रकृति अपने सभी वृक्ष-वनस्पतियों , नदी-सरोवरों , पर्वत-झरनों एवं जीव-जंतुओं के परिकर के साथ मंगल गीत गाने में लगी है। सर्वत्र दिव्य नाद निनादित हो रहा था। सुखद् समीरण अपने मंद प्रवाह में सर्वत्र सुगंध प्रसारित कर रहा था।
सरयू तट पर बसी अयोध्या नगरी में प्रकृति की पावनता ,पुण्यता ,शुचिता ,शुभता ,सुषमा, सुरभि और सौंदर्य कुछ विशेष ही बढ़ गये थे । इस दिवस देवशक्तियों में पुलक, उत्साह व साहस अपने आप बढ़ गये ।
सभी संत समाज यही बारंबार कह रहा था – “ हे मेरे राम ! प्रकृति की अंतश्चेतना में दिव्य सभ्यता का परिवर्तन पनप रहा है , अब प्रकट होने को है । मुझे मेरे राम से कोई विलग नहीं कर सकता । ”
रक्तपात के अतिरेक से बिलखती अयोध्या अपने राम को पाकर अब धन्य हो चली है।

✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’
(वाराणसी,भारतभूमि/)
मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी ।

Language: Hindi
Tag: लेख
304 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
संतोष
संतोष
Manju Singh
मतदान करो और देश गढ़ों!
मतदान करो और देश गढ़ों!
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
I want to hug you
I want to hug you
VINOD CHAUHAN
कविता ---- बहते जा
कविता ---- बहते जा
Mahendra Narayan
हिन्दी में ग़ज़ल की औसत शक़्ल? +रमेशराज
हिन्दी में ग़ज़ल की औसत शक़्ल? +रमेशराज
कवि रमेशराज
नौकरी (२)
नौकरी (२)
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
घुंटन जीवन का🙏
घुंटन जीवन का🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
फूल भी खिलते हैं।
फूल भी खिलते हैं।
Neeraj Agarwal
डाल-डाल तुम होकर आओ, पात-पात मैं आता हूँ।
डाल-डाल तुम होकर आओ, पात-पात मैं आता हूँ।
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
मुस्कान
मुस्कान
Santosh Shrivastava
प्रकृति की सुंदरता देख पाओगे
प्रकृति की सुंदरता देख पाओगे
Sonam Puneet Dubey
तुम नग्न होकर आये
तुम नग्न होकर आये
पूर्वार्थ
भूखे हैं कुछ लोग !
भूखे हैं कुछ लोग !
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
गुरु का महत्व
गुरु का महत्व
Indu Singh
4072.💐 *पूर्णिका* 💐
4072.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
..
..
*प्रणय*
प्यार या प्रतिशोध में
प्यार या प्रतिशोध में
Keshav kishor Kumar
आप अपनी नज़र फेर ले ,मुझे गम नहीं ना मलाल है !
आप अपनी नज़र फेर ले ,मुझे गम नहीं ना मलाल है !
DrLakshman Jha Parimal
लम्बे सफ़र पर चलते-चलते ना जाने...
लम्बे सफ़र पर चलते-चलते ना जाने...
Ajit Kumar "Karn"
Pyaaar likhun ya  naam likhun,
Pyaaar likhun ya naam likhun,
Rishabh Mishra
अनपढ़ व्यक्ति से ज़्यादा पढ़ा लिखा व्यक्ति जातिवाद करता है आ
अनपढ़ व्यक्ति से ज़्यादा पढ़ा लिखा व्यक्ति जातिवाद करता है आ
Anand Kumar
ढल गया सूरज बिना प्रस्तावना।
ढल गया सूरज बिना प्रस्तावना।
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
दे दो हमें मोदी जी(ओपीएस)
दे दो हमें मोदी जी(ओपीएस)
Jatashankar Prajapati
आई आंधी ले गई, सबके यहां मचान।
आई आंधी ले गई, सबके यहां मचान।
Suryakant Dwivedi
दोहा सप्तक. . . . शिक्षा
दोहा सप्तक. . . . शिक्षा
sushil sarna
........?
........?
शेखर सिंह
हे वतन तेरे लिए, हे वतन तेरे लिए
हे वतन तेरे लिए, हे वतन तेरे लिए
gurudeenverma198
सही दिशा में
सही दिशा में
Ratan Kirtaniya
"फूल बिखेरता हुआ"
Dr. Kishan tandon kranti
बसंती बहार
बसंती बहार
इंजी. संजय श्रीवास्तव
Loading...