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14 Jan 2022 · 2 min read

राम और बाबर में न कोई मेल है।

जाने वो दिन कब आएगा, जब इन्तेजार की होगी शाम
कब मिलेगा भक्तों को मंदिर, तंबू में रहते जिनके राम,
जगत जिनका गुण गाता है, कुछ लोग उन्हें झुठलाते हैं,
भूल जाते हैं वैभव उनका, कुछ ऐसा वो कह जाते हैं,
यही उनकी अभिलाषा है, की लग नही कोई विराम,
कब मिलेगा भक्तों को मंदिर, तंबू में रहते जिनके राम,
ईश्वर उनको माफ़ करे, जो प्रश्न राम पर लगाते हैं,
भूलकर अपने सच्चे आराध्य को गैरो को अपनाते हैं,
शायद उनको ये याद नहीं, क्यों राम रोम में समाया था,
अपनी सुविधा को छोड़ वन जाकर, पुत्र धर्म को निभाया था,
उसने ही तो कर वध बाली का, सुग्रीव मित्र को बचाया था,
कर युद्ध में रावण को परास्त, अपना लोहा मनवाया था,
पत्नी सीता को निष्कलंक जिसने, लंका से वापस लाया था,
इतना सब कुछ हो जाता है, तुम ढूँढ रहे हो दर उसका,
जो सबको घर दे सकता है, तुम पूछ रहे हो घर उसका,
वो चाहें तो ले सकते हैं, एक पल की देरी न होगी,
उनका अर्चन हो जाएगा, किसी को भी बेड़ी न होगी,
जिसने लुटा है जन जन को, तुम उसको अग्रज कहते हो,
मंगोल से आए लुटेरे को, तुम अपना पूर्वज कहते हो,
सोचों यदि सब पहले से ही था, तो अब इतना बदलाव क्यों है?
जहाँ जन्म लिया बाबर का वंशज, फिर उस मिट्टी में घाव क्यों हैं?
निकालों ऐसे दृष्ट को जीवन से, अब तो तुम इंसान बनों,
रावण (बाबर) को अपनाओं मत, अब पुरुषो में उत्तम राम बनों,
मत बहलाओ खुद को भाई, व्यर्थ का ये सब खेल है,
स्वयं जानों राम और बाबर को, जिनमें कोई न मेल है।
धन्यवाद !
अमित कुमार प्रसाद ( प. बंगाल)

Language: Hindi
203 Views
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