*राममय हुई रामपुर रजा लाइब्रेरी*
राममय हुई रामपुर रजा लाइब्रेरी
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22 जनवरी 2024 को अयोध्या में जन्मभूमि मंदिर में भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा केवल भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में एक दिव्य और अलौकिक आभा के साथ मनाया जा रहा है। रामपुर भी इससे अछूता नहीं है। रामपुर रजा लाइब्रेरी इस अवसर पर पूरी तरह राममय है।
रामपुर रजा लाइब्रेरी के प्रवेश द्वार पर सड़क से भीतर प्रवेश करते ही भगवान राम के चित्र तथा भगवान राम से संबंधित प्रदर्शनी ऐतिहासिक दरबार हाल में किए जाने की सूचना अंकित दिखाई दी। अंदर प्रदेश करने पर सीढ़ियों पर चढ़ते ही मुख्य प्रवेश द्वार भगवान राम के चित्रों से सुसज्जित था। दरबार हाल की ओर जाने वाली गैलरी दोनों ओर भगवान राम के जीवन के प्रसंग से संबंधित चित्रों से सजाई गई थी।
दरबार हाल में मुख्य प्रदर्शनी थी जो पूर्णतः राम भक्ति से सराबोर थी। बड़े-बड़े चित्र भगवान राम के जीवन के विविध पक्षों को दर्शकों को जहॉ एक ओर समझा रहे थे, वहीं दूसरी ओर दरबार हाल के मंच पर संपूर्ण वातावरण चित्रों के माध्यम से राममय हो रहा था।
रामचरितमानस की चौपाइयॉं दरबार हाल में दर्शकों के लिए विशेष रूप से चुन-चुन कर लिखकर लगाई गई थीं ।इसका उद्देश्य रामचरितमानस में वर्णित राम भक्ति के ज्ञान को दर्शकों के हृदय में पहुॅंचाना था।
भगवान राम से संबंधित अनेक पुस्तकें दरबार हाल की शोभा बढ़ा रही थीं । इनमें जहॉं एक ओर 1715 ईस्वी में दिल्ली के बादशाह के समय में सुमेरचंद द्वारा फारसी भाषा में लिखी हुई रामायण की मूल पांडुलिपि थी, जिस पर सोने के पानी से अनेकानेक चित्र अंकित हैं, तो वहीं दूसरी ओर सन् 1627 ईसवी की भी वाल्मीकि रामायण की एक पांडुलिपि है। यह फारसी अनुवाद मुल्ला मसीह पानीपती द्वारा किया गया था। 180 पृष्ठ की यह पांडुलिपि लाइब्रेरी में दर्शकों के लिए रखी गई थी।
एक पांडुलीप संपूर्ण वाल्मीकि रामायण की 637 पृष्ठ की दर्शनार्थ रखी हुई थी। इस पर तिथि अंकित नहीं थी।
कुछ पुरानी पुस्तकें रजा लाइब्रेरी की दरबार हाल प्रदर्शनी में देखने में आईं । 1922 ई की 548 पृष्ठ की रामायण तस्वीर नामक उर्दू पुस्तक बाबू शिव व्रत लाल की लिखी हुई है। इसका प्रकाशन लाहौर से हुआ।
1929 ईस्वी में भी उर्दू भाषा में राम चर्चा नामक पुस्तक मुंशी प्रेमचंद ने लिखी थी। यह 343 पृष्ठ की लाहौर से प्रकाशित पुस्तक भी रजा लाइब्रेरी प्रदर्शनी की शोभा बढ़ा रही थी।
वाल्मीकि रामायण संस्कृत और हिंदी में पंडित राजाराम संस्कृत प्रोफेसर की टीका के रूप में 931 वृहद प्रष्ठों की प्रकाशित कृति है। इसका प्रकाशन 15 जुलाई 1915 अंकित है। विशेषता यह है कि इस पर लोहारू विभाग संस्कृत अंकित है। यह नवाब रजा अली खान की पुत्रवधू बेगम नूर बानो के विवाह के समय उनके मायके से प्राप्त हुई थी। यह रामपुर के नवाबी इतिहास का एक उज्ज्वल पक्ष है कि बेगम नूर बानो को अपने विवाह में दहेज के रूप में पुस्तकें प्राप्त हुई थीं, जो शिक्षा और पठन-पाठन के प्रति उनके मायके की दिलचस्पी को बताती हैं । केवल इतना ही नहीं उन पुस्तकों में वाल्मीकि रामायण भी शामिल है, यह धर्मनिरपेक्षता की एक सुंदर कहानी स्वयं कह रही है।
1932 ईसवी में मुंबई से प्रकाशित पुस्तक के टीकाकार पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र हैं । इसकी पृष्ठ संख्या 1340 है। यह तुलसीदास की रामायण है।
एक बहुत छोटे आकार की पांडुलिपि जिल्द चढ़ी हुई है। यह शंकराचार्य जी की लिखी हुई श्री रामचंद्रस्तवराज स्तोत्रम् है। आकार मुश्किल से 5 इंच × 3 इंच होगा। 1752 ई में लिखित यह पांडुलिपि 102 प्रष्ठों की है। संस्कृत भाषा में है। प्रत्येक पृष्ठ पर चार पंक्तियों में सामग्री है। चमकदार काली स्याही से लेख अंकित है। रजा लाइब्रेरी ने मूल पांडुलिपि को संरक्षित करते हुए इसके चारों तरफ सफेद कागज लगाकर पांडुलिपि की आयु को सुदीर्घ करने का सफल प्रयास किया है।
कुल मिलाकर दर्शकों को इस प्रदर्शनी में आकर लगभग चार सौ वर्षों से रामकथा उर्दू और फारसी में किस प्रकार से अपनी लोकप्रियता का विस्तार करती रही है, इसका पता लग रहा है। अच्छी पुस्तकों और चित्रों को आधार बनाकर सजाई गई श्री राम-प्रदर्शनी के आयोजन के लिए रामपुर रजा लाइब्रेरी को बधाई।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451