*रामभरोसे तुम कौन हो ? (हास्य व्यंग्य)*
रामभरोसे तुम कौन हो ? (हास्य व्यंग्य)
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तुलसीदास जी ने एक दोहा लिखा था जो इस प्रकार है:-
एक भरोसे एक बल ,एक आस विश्वास
एक राम घनश्याम हित ,चातक तुलसीदास
अर्थात एक राम के भरोसे यह तुलसीदास है । यह रामभरोसे अपने आप में आस्था का परिचायक था । न जाने कितनी शताब्दियों से रामभरोसे ईश्वर के प्रति जनता के गहरे विश्वास को प्रतिबिंबित करता रहा । कब यह हास्य और व्यंग्य में बदल गया ,कुछ समझ में नहीं आता । राम पर भरोसा करना बुरी बात नहीं होती है । इसकी तो प्रशंसा होनी चाहिए । आदमी राम पर भरोसा करे और यह सोचे कि राम के भरोसे हम चल रहे हैं ,राम के भरोसे हमारा काम अवश्य होगा ,राम के भरोसे हम जीवित रहेंगे ,राम के भरोसे हम इस संसार में धन-संपत्ति सुख संपदा एकत्र करेंगे तो इसमें बुरा नहीं है ।
रामभरोसे का मतलब है एक आस्थावान व्यवस्था ,आस्था पर आधारित समाज ,ईश्वर के प्रति गहरी समर्पण भावना का परिचायक तंत्र । मगर अब रामभरोसे का मतलब अस्त-व्यस्त होने लगा । जो चीज जर्जर है उसे रामभरोसे कह दिया जाता है । जिस चीज में हजारों छिद्र हों, वह रामभरोसे कहलाती है । जहाँ कोई नियमबद्धता न हो ,वह रामभरोसे हो गया । जहाँ कुछ अता-पता न मिले वह रामभरोसे है । जिस के डूबने की आशंका ज्यादा है ,उसे रामभरोसे कहा जाता है । गरज यह है कि एक जमाने में जिसके साथ जीवन की आशा जुड़ती थी अब वह रामभरोसे शब्द मरण के साथ जुड़ कर रह गया है ।
किसी को अगर किसी के आलसीपन को उभार कर टिप्पणी करनी है ,तो वह कह देता है कि भाई साहब ! आप तो रामभरोसे लग रहे हैं । सबसे बड़ी मुश्किल तो उन लोगों की आ गई जिनका नाम ही रामभरोसे है । वह बेचारे क्या करें ? सड़क पर जा रहे हैं और किसी ने बुला लिया कि “रामभरोसे ! जरा इधर तो आइए ! ”
अब सबकी नजरें उनकी तरफ उठ गईं और लोग देखने लगे कि अरे ! यही रामभरोसे हैं ! इन्हीं के ऊपर सारी व्यवस्थाओं का बोझ टिका हुआ है ! वह बेचारे अपनी सफाई देते फिरते हैं कि हम वह राम भरोसे नहीं है ,जो आप समझ रहे हैं । हम सही मायने में सही वाले रामभरोसे हैं। लेकिन कौन ,किसको ,कहाँ तक ,कितना समझाए ! रामभरोसे दुखी है । वह कोने में सिर झुकाए बैठा हुआ है । कह रहा है – “हमारे तो नाम का बंटाधार हो गया ! अब कौन अपना नाम रामभरोसे रखेगा ! ” एक अच्छा – भला नाम देखते – देखते कुछ सालों में कितना बिगड़ जाता है ,यह रामभरोसे के उदाहरण से समझा जा सकता है ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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