*रामपुर रजा लाइब्रेरी में सुरेंद्र मोहन मिश्र पुरातात्विक संग्रह : एक अवलोकन*
रामपुर रजा लाइब्रेरी में सुरेंद्र मोहन मिश्र पुरातात्विक संग्रह : एक अवलोकन
■■■■■■□■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
रामपुर रजा लाइब्रेरी के दरबार हॉल में आज दिनांक 15 जनवरी 2022 शनिवार को स्मृति शेष श्री सुरेंद्र मोहन मिश्र के पुरातात्विक संग्रह का अवलोकन करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ । रजा लाइब्रेरी का दरबार हॉल स्वयं में एक ऐतिहासिक धरोहर है । विशाल हॉल राजसी वैभव को प्रदर्शित करता है । और क्यों न करे ? यहीं पर रियासत के विलीनीकरण से पहले तक शाही दरबार लगा करता था । संभवतः जिस स्थान पर शासक का सिंहासन स्थित रहता होगा ,ठीक उसी स्थान पर सुरेंद्र मोहन मिश्र पुरातात्विक संग्रह काँच की एक प्रदर्शन-पेटिका में दर्शकों के अवलोकनार्थ रखा हुआ था। अधिकांश वस्तुएं ईसा पूर्व की हैं। यह आमतौर पर मिट्टी की बनी हुई है ।
क्रम संख्या एक पर एक नारी शरीर मिट्टी का बना हुआ है जिस पर परियों के समान पंख लगे हुए हैं ।
क्रम संख्या दो एक शिव प्रतिमा है ,जो 10वीं या 11वीं शताब्दी की है । इसमें भगवान शंकर के तीसरे नेत्र और जटाएं स्पष्ट देखी जा सकती हैं । यह मूर्ति भी मिट्टी की ही है ।
क्रम संख्या 3 में एक चेहरा है जो गले में हार पहने हुए है । इसे विदेशी महिला के रूप में आकलन किया गया है ।
क्रम संख्या छह पर ईसा पूर्व के दो गोल सिक्के देखने में मिट्टी के जान पड़ते हैं । यह बहुत आश्चर्यजनक लगते हैं । एक पर परिधि में अर्धचंद्राकार पांच आकृतियां बनी हुई हैं। जो संभवतः धनराशि का मूल्य बताने के लिए होंगी। दूसरे सिक्के पर भूलभुलैया जैसा एक गोल घेरा बना हुआ है। विशेषता यह है कि गोल चक्कर की लकीरें सीधी सपाट न होकर कलात्मकता लिए हुए हैं ।
क्रम संख्या आठ पर एक मिट्टी का प्याला है ,जो देखने में बहुत साधारण प्रतीत होगा ,लेकिन छठी शताब्दी का होने के कारण इसके मूल्य का अनुमान लगाना कठिन है।
क्रम संख्या 9 में एक महिला का शीश दर्शाया गया है ,जिस पर मुकुट रखा हुआ है।
क्रम संख्या 18 में भी एक देवी के रूप में युद्ध-आभूषण पहने हुए चित्र मिट्टी से निर्मित है । यह दो हजार ईसा पूर्व का अनुमानित किया गया है ।
क्रम संख्या 12 में पति-पत्नी कुछ विशेष प्रकार के वस्त्र पहने हुए दिखाए गए हैं । यह भी मिट्टी की कलाकृति है ।
ईसा से 2000 साल पहले की पीतल की तलवार पुरातत्व-प्रेमियों की नजर में जितनी मूल्यवान है ,सर्वसाधारण की दृष्टि में वह उतनी ही मामूली नजर आएगी ।
13ए क्रम संख्या पर चौथी शताब्दी की एक अंगूठी है जिसमें अन्य धातुओं के साथ सोना भी निश्चित है।
क्रम संख्या 13बी में अहिच्क्षेत्र से प्राप्त एक हंस की आकृति प्रदर्शित की गई है । यह चार शताब्दी ईसा पूर्व की है ।
ताँबे की बनी हुईं ईसा से 2000 वर्ष पूर्व की दो चूड़ियाँ जिसे आज भी ग्रामीण भाषा में ” खंडुए ” कहते हैं ,ध्यान आकृष्ट करते हैं । इन सब का मूल्य तो कोई पारखी ही लगा सकता है ।
सुरेंद्र मोहन मिश्र 1985 में रामपुर के प्रदर्शनी कवि सम्मेलन में आए थे । उन्होंने अपनी कुछ हास्य कविताएं भी सुनाई थीं। इन पंक्तियों के लेखक ने उस समय एक सफल हास्य कवि के रूप में मिश्र जी के दर्शन किए थे । आज लगभग 37 वर्ष बाद पुरातत्व के महत्वपूर्ण शोधकर्ता के नाते आपका परिचय अतिरिक्त प्रसन्नता का भाव उत्पन्न कर रहा है । यह संग्रह हमें बताता है कि जो कुछ पुराना है ,साधारण है ,कटा-फटा विकृत है अथवा चमक-दमक से रहित है ,वह भी एक मूल्यवान वस्तु हो सकती है। अनेक बार लोगों के हाथों में पुरानी अनमोल वस्तुएं आती तो हैं, लेकिन वह उनका मूल्य नहीं समझ पाते और उन्हें फेंक देते हैं । पारखी निगाहें प्राचीन वस्तुओं का मूल्य जानती हैं और उन्हें एक बहुमूल्य संग्रह में बदल देती हैं। रामपुर रजा लाइब्रेरी का “सुरेंद्र मोहन मिश्र संग्रह” हिंदी के एक श्रेष्ठ साहित्यकार के द्वारा सृजित एक ऐसा ही संग्रह है । सुरेंद्र मोहन मिश्र जी धुन के पक्के थे । कई -कई दिन तक पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं को खोजने में खपा देते थे और फिर उपेक्षित मिट्टी के टीलों, नदियों आदि से एक प्रकार से कहें तो अनमोल मोती ढूँढ कर लाते थे।
सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के सुपुत्र श्री अतुल मिश्र अपने पिता की विरासत को मनोयोग से सहेज कर रखे हुए हैं तथा समाज को यह बहुमूल्य संपदा भली प्रकार से अवलोकनार्थ उपलब्ध हो सके ,इस हेतु प्रयत्नशील हैं। मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के बहुआयामी व्यक्तित्व को लेकर एक सुंदर परिचर्चा साहित्यिक मुरादाबाद व्हाट्सएप समूह पर 13-14-15 जनवरी 2022 को की है । इन सब प्रवृत्तियों से श्री सुरेंद्र मोहन जी के योगदान पर सबका ध्यान जाना उचित और सराहनीय है।
————————————————–
लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451