*रामचरितमानस में अयोध्या कांड के तीन संस्कृत श्लोकों की दोहा
रामचरितमानस में अयोध्या कांड के तीन संस्कृत श्लोकों की दोहा छंद में भावाभिव्यक्ति
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यस्याङ्के च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके
भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट्।
सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवरः सर्वाधिपः सर्वदा
शर्वः सर्वगतः शिवः शशिनिभः श्रीशङ्करः पातु माम्।।1।।
प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।
मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मञ्जुलमंगलप्रदा।।2।।
नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्।।3।।
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1
शुभ्र वर्ण विष कंठ में, भाल चंद्रमा बाल।
नमस्कार श्री पति-उमा, गले सर्प की माल।।
2
रक्षा करिए देव शिव, सर्वेश्वर भगवान।
मस्तक से हैं कर रहीं, गंगा जी प्रस्थान।।
3
भस्म लपेटे देव शिव, करते जग-संहार।
आप सर्व व्यापक प्रभो, जग के शुभ आधार।।
4
मिला राजपद राम को, या पाया वनवास।
दुख-प्रसन्नता से परे, मंजुल-मुख आभास।।
5
नीलकमल से अंग हैं, धनुष-बाण ले हाथ।
नमस्कार श्री राम जी, सीता जी के साथ।।
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दोहा रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451