“रामगढ़ की रानी अवंतीबाई लोधी”
आज लेखनी फिर से लिख दे तू गाथा बलिदानों की।
जिये मरे जो देश के खातिर ऐसे वीर ज़बानों की।
मिली किसी को जेल यातना मिली किसी को फांसी थी।
वीर शहीदो की यह धरती जिनको काबा काशी थी।
इन्ही शहीदों की खडी पंक्ति मे वीर अबंती रानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी ।1
यह मिट्टी औरो को मिट्टी मुझको तो यह चंदन है।
यह है माथे का अबीर इसका बदन अभिनंदन है।
कितने सुहागो का सिंदूर उनके होठो की लाली है।
कितनी माताओं का ममत्व यह मुखडो की हरियाली है।
मुर्दा दिल में भी भर देती फिर जोश जबानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी ।2
श्रद्धा सुमन तुम्हे अर्पित रानी इनको स्वीकार करो।
और नही कुछ ला पाया तो इनको अंगीकार करो।
और तुम्हारी गाथा रानी रामायण से भारी है।
स्वतंत्रता मे योगदान का सदा देश आभारी है।
मध्य देश की हर जबान पर जिसकी अमिट कहानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी ।3
जुझार सिंह था नाम पिता का मनकेडी रहने बाली।
कुंदन तपता जभी आग मे और निखरती है लाली।
बन मे खिले हुए सुमनो की सुरभि फैलती चारो ओर।
अंधकार को दूर भगाती एक किरण पाकर के भोर।
लोधि बंश की वह कुलभूषण रामगढ़ की रानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी ।4
मध्य देश के हर राजा को रानी ने चिट्ठी भेजी।
बैठ न रहना चिट्ठी पाकर राज हटाना अंग्रेजी।
और तुम्हारी चुप्पी भैया नमक छिडकती घावों में।
शक्ति नही तो भेज रही हूं चुडियां पहनो बाहो मे।
डूबो रखी है देश की नैया हम सबकी नादानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी ।6
सत्य अहिंसा का अनुपालन सदा संत परिपाटी।
पर मूर्खता की औषधि होती सुनो मित्र वर लाठी।
जब तक मन मे प्राण चेतना मन मे जब तकबाकी।
भारत मां को नही बंदिनी रख सकता है पापी।
बिजली सी भर जाती तन मे सुन सुन उसकी बाणी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी ।7
सागर सी दिल की गहराई थी पर्बत सी दृढ़ आशा थी।
और असम्भव शब्द कभी भी रही न जिसकी भाषा थी।
वीर शिवाजी से सीखा था तूफानों से टकराना।
राणा जी जिसने सीखा घास रोटियों का खाना।
मुर्दा दिल मे भर देती फिर से जोश जबानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी ।8
निकल पडी लेकर तलबारे वीर जबानो की टोली।
मां बहनो ने इनको भेजा कर माथे कुंकुम रोली।
तोप तंमंचा तलबारों से फिर खेली रण मे होली।
जय 2 भारत मां की बोली फिर जय रानी मां की बोली।
बक्त पडा जब आज देश पर कीमत उन्हे चुकानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी ।9
पुत्रों को दासी पर सौपा रोकर के रानी बोली।
मातृभूमि के लिए रचानी मुझको जीबन की होली।
सुतो समझना न थी माता मै समझूंगी न थे बेटे।
मेरे पथ ही तुम चलना अपने जीबन के रहते।
मां बेटो के रुद्ध कंठ थे और सिसकती बाणी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी ।10
जय लोधेश्वर के मंत्रो से धधक उठी रण की ज्वाला।
वीर सिपाही वीर भेष में ले कर मे बरछी भाला।
इधर योगिनी फेरी देती डाले रुंडो की माला।
उधर सशंकित थी अग्रि सेना पड़ा सिंहनी से पाला।
रणचंडी का भेष बनाये रानी बनी भवानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी ।11
सनन सनन कर चली गोलियां जैसे मघा बरसती है।
चम चम कर चमकी तलवारें जैसे घटा लरजती है।
आज सिंहनी सी वह रानी बनकर बिजली टूट पड़ी।
ज्वाला मुखी सदृशूलगती थी बनकर लावा फूटू पड़ी।
प्राणों की अरि भीख मांगता रानी क्रोध समानी थी।
खूब लड़ी मरदानी वह तो रामगढ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी। 12
दुर्गा थी या काली थी या थी रणचंडी की अबतार।
कालमूर्ति सी खडी सामने होकर घोड़े परुअसवार।
सरर सरर उड़ गयी हबा मे उड़ी हबा के झोके से।
टूट पडी अरियो के दल पर नही रुकी वह रोके से।
मुर्दों दिल में भीऊभर देती फिर सै जोश जबानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी। 13
किये बार पर बार धरा पर शोणित की सरिता मचली।
भूखी सिंहनि सी मचल मचल अरि सेना पर रानी मचली।
नही किसी मे इतनी हिम्मत जो रानी का बार सहे।
पौरुष फीका पड गया शत्रु का क्या कोई करबाल गहे।
डाल दिये हथियार शत्रु ने हार हृदय से मानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी ।14
सौ सौ अरियो के झुंडो पर वह एक बाज सी भारी थी।
घनघोर घटा अंधियारी मे घन दामिनि सी उजियारी थी।
जब घिरी शत्रुओं से पाया तो मारी हृदय कटारी थी।
भारत माता कै चरणो मे अर्पित उसकी कुर्बानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो रामगढ़ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी ।15
स्वतंत्रता की यह चिनगारी मैने स्वयम जलायी थी।
नही प्रजा का दोष रंच भर इतना ही कह पायी थी।
अपना वह सर्वस्व लुटाकर रानी स्वर्ग सिधार गयी।
और देश की आजादी पर अपना सबकुछ बार गयी।
याद करेगे आने बाले एक बलिदानी रानी थी।
खूब लडी मरदानी वह तो रामगढ की रानी थी।
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी थी। 16
जाओ रानी याद करेगी तुझको कवियों की वाणी.
तेरा नाम रहेगा तब तक जव तक गंगा में पानी.
जब तक सूरज चाँद सितारे तेरी अमिट कहानी है.
स्वतंत्रता में प्रीति मनुज की तेरी आमिट निशानी है
बलिदानो में बलिदान तुम्हारा न जिसकी कोई सानी थी.
दुर्गा रूपा शक्ति स्वरूपा वीर अबंती रानी.
खूबूलडी मरदानी वह तो रामगढ की रानी थी। 17
बही अबंती एक बार फिर तुम्हें आज ललकार रही ।
वही सिंहनी सी घायल हो देखो भर हुंकार रही ।
वही अबंती एक बार फिर तुम्हें चूडियां भेज रही ।
लाल किले पर ध्वज फहराना तुम्हे बुलाबा भेज रही ।
भूल चुके तुम अपना गोरव उसकी याद दिलानी थी
खूव लडी मरदानी वह तो रामगढ की रानी थी.18
प्रेषक
श्याम सिंह लोधी