रामकथा की अविरल धारा श्री राधे श्याम द्विवेदी रामायणी जी के श्री मुख से
रामकथा की अविरल धारा श्री राधे श्याम द्विवेदी रामायणी जी के श्री मुख से अग्रवाल धर्मशाला रामपुर के श्रीराम सत्संग भवन में प्रवाहित हो रही है और श्रोताओं की भीड़ प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ।आज पन्द्रह जून 2019 शनिवार को सायंकाल पांच बजे से 7:00 बजे तक के समय में तो भीड़ इतनी हो गई कि सत्संग भवन छोटा पड़ गया।
” मेरे राम जी की निकली बरात, अयोध्या से मिथिला चली”…अहा ! कैसा समां महाराज श्री ने बाँध दिया और तबले और बाजे के साथ जैसा सुमधुर वातावरण पंक्तियों के साथ अंत में निर्मित हुआ,वह अद्भुत रसमय था।
” प्रथम बरात लग्न ते आई “-अर्थात ठीक समय पर बरात पहुंच गई ।
“जेहि.क्षण राम मध्य धनु तोड़ा “- प्रसंग राम विवाह का चला था अतः शिवजी का जो धनुष तोड़ा उसमें मध्य शब्द की व्याख्या महाराज जी ने की यह की कि धनुष को मध्य से तोड़ा गया ।दूसरी व्याख्या यह है कि सभा के मध्य में भगवान राम ने उपस्थित होकर धनुष को तोड़ा। शब्दों की यह व्याख्या रामायण में गहन अध्ययन को दर्शाती है।
आज की राम कथा का प्रमुख उपदेश इन शब्दों में रहा-” सबसे सेवक धर्म कठोरा”.. सेवक बनना सबसे कठिन है क्योंकि सेवक वही बन सकता है जिसे केवल सेवक बनने की, सेवा करने की चाह है और किसी प्रकार परिदृश्य में स्वयं को उपस्थित करने की लालसा जिसके मन में नहीं है।रामायणी जी राम कथा को सुमधुर और आकर्षक शैली में मधुर कंठ से श्रोताओं के सामने प्रस्तुत करते हैं और इस बात का ध्यान रखते हैं कि सद् उपदेश जो राम कथा में निहित है वह श्रोताओं तक भली भाँति पहुँच जाए।