राब्ता है कोई
शायद हमारे दरमियां राब्ता है कोई
वरना किसी को इतना सोचता है कोई
वो आंखों से होकर दिल तक पहुंच गया
भला क्या यहां से भी रास्ता है कोई
मेरी दुआएं असर क्यों नहीं ला रही हैं
क्या मुझसे ज़्यादा तुम्हे मांगता है कोई
ज़रूर उसे गुलाब की ख्वाहिश रही होगी
वरना कांटो से कहां उलझता है कोई
इश्क़ जब दिल की गहराई में उतरता है
खुशबू बनके सांसों में महकता है कोई
कुछ भी करने से पहले ख्याल ये रहे कि
हर वक्त हम पर नज़र रखता है कोई
मोहब्बत जिस्म तक ही सिमट जाती है
अब रूह तक कहां पहुंचता है कोई
लोग कहते हैं दिल में भी घर होता है
चंद सूत के दायरे में कैसे रहता है कोई
मुकद्दर में उसके तुम हो भी कि नहीं “अर्श”
तुम्हे हाथों की लकीरों में ढूंढता है कोई