राफ़ेल की परिचर्चा
राफ़ेल की परिचर्चा में वो चर्चा हमने भुला दिया ।
डाँट ग़रीबी को हमने भी भूखे तन ही सुला दिया ।
पेट के भीतर जलती रहती अंगारें अभिमान में ।
जैसे दिन भर अग्नि जलती रहती है शमशान में ।
हुई जीत कांग्रेस की चाहे गई बीजेपी हार ।
भात बिना भारत का देखो रुका रक्त संचार ।
हम क्या जाने योगी,मोदी,सोनिया मैडम कौन हैं ।
रोटी पर परिचर्चा करने वाले मंत्री मौन हैं ।
लाचारी का उसके नेता पुछ रहे थे जात ।
अंतिम इच्छा उसकी केवल माँग रही थी भात ।
शोर हुए चहुँओर देश में बजे सियासी झाल ।
उसकी सुनी छाती का ना पूछे कोई हाल ।
जिस भारत की अंगड़ाई में तड़प रहे नवजात ।
चीन की छोटी आँख पूछती मोदी की औक़ात ।
चुटकी लेती इतराती हैं मुग़लों की शमशिरें ।
दिया सियासी घाव ग़ज़ब की मोदी की तक़दीरें ।
इठलाती चलती हैं देखो ख़िलजी की तलवारें ।
हमको उड़ना सिखलाती हैं जापानी हथियारें ।
केवल हमको राष्ट्रहित प्रतिशोध सिखाया जाता है ।
संसद वाले साँपों को भी दूध पिलाया जाता है ।
कर बद्ध निवेदन है मेरा उन मत और मतदाताओं से ।
दूध पिलाने वाला हक़ ना छीन लेना माताओं से ।
✍✍धीरेन्द्र पांचाल