रानी लक्ष्मीबाई
ईट का जबाव पत्थर से दूँगी,
पर फिरंगियों झाँसी न दूँगी ।
कह रानी जीत का ध्वज लहराती ,
हर एक शत्रू को मौत की नींद सुलाती ।
रक्त प्रवाहित होता उसमें दुर्गे का ,
इसलिये मान रखती झण्डे का ।
गौरवान्वित है भू मेरी , उस छबीली से ,
लक्ष्मीबाई, रानी मर्दानी, हठीली से ।
जन्मतिथि पर देशभक्ति अलख जगाये ,
पन्नों में लिखा इतिहास पुनः दोहराये ।
कर्तव्यनिष्ठा, मर्यादा ओजस्विता स्रोत ,
स्वतन्त्रता चिंगारी पुत्र प्रेम से ओतप्रोत ।
सूनो फिरंगियों झाँसी न दूँगी ,
ईट का जबाव पत्थर से दूँगी ।
ईट का जबाव पत्थर से दूँगी ,
कह रानी क्रांति बिगुल बजाती ।
थर -थर काँपे गोरे , उनको मार भगाती ,
अमर वीरता की वो कहानी माँ सुनाती ।
सुना -सुना शिराओं में शोला दहकाती ,
इसलिये देख वर्तमान आग लग जाती ।
अदम्य शौर्य और साहस की सलिला ,
मरते दम तक दिखाती रही जो लीला ।
पीठ पृष्ठ बाँधे दत्तक पुत्र दामोदर को ,
दाँत मध्य दबा दबिश कुचलती गोरों को ।
घायल हो गिरी सिंहनी,वीरगति पानी थी ,
बुन्देले के मुँह हमने सुनी कहानी थी ।
क्षितिज भी गाये गाथा, तारे फूल बरसाए ,
अन्त समय संत भूमि पर सदगति पाए ।
उन संतो संग मैं रानी को नमन करती हूँ ,
जन्मतिथि अससर पर पुष्प चढाती हूँ ।
सूनो फिरंगियों झाँसी न दूँगी ,
ईट का जबाव पत्थर से दूँगी