रानी झाँसी लक्ष्मीबाई
वीर छंद/आल्हा
नाना की बहना मुख बोली,लक्ष्मीबाई नाम सुभाय।
पढ़ती- लिखती सँग नाना के, उसको नाना खेल सुहाय।।
खेल-खेल में व्यूह रचाये, दुर्ग तोड़ती,तीखे वार।
बर्छी, ढाल, कृपाण, कटारी, थे उसके ये प्रिय हथियार।।
ब्याह हुआ झांसी राजा से, गंगा धर उसका अधिकार ।
दुर्गा थी या थी रणचंडी,लिये वीरता का अवतार।।
रानी विधवा, हाय विधाता! ,बिन वारिस झांसी का राज ।
डलहौजी का मन ललचाया,हड़पी झांसी बिन आवाज। ।
जीत कालपी रण में रानी,अंग्रेजों को थी ललकार।
भीषण युद्ध हुआ रानी से,दोनों हाथों में तलवार।।
जब-जब दुश्मन जाल बिछाता, झलकारी करती संहार।
चंडी बनकर झपटी रानी, धर प्रलंयकर का अवतार।।
जनरल स्मिथ को रण में घेरा,रानी देती धूल चटाय।
झलकारी जो डटी वहाँ थी,फिरंगियों को रही सताय।।
रानी झांसी अमर सुता थी,समर क्रांति का बन हथियार।
स्वतंत्रता का परचम थामे, वीर शहीदों का व्यवहार।।
छीन लखनऊ दिल्ली छीनी, किया नागपुर पर आघात।
थी बंगाल, बिहार ,मराठा, कर्नाटक की कौन बिसात।।
नाना चेता झांसी चेती ,तात्या पर सबका विश्वास ।
अडिग वहां पर कुंवर हमारे,बलिदानों का रच इतिहास।।
अंग्रेजी सेना अभिमानी, करने लगी घात प्रतिघात ।
मर्यादित पर हिंद सिपाही ,अंग्रेजों पर था आघात।।
वीरों की ये अमर कहानी, सुन डोला अंग्रेजी राज ।
राजा पंचम भारत आया, लिखने भारत का इतिहास।।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
वरिष्ठ परामर्श दाता, प्रभारी रक्त कोष
जिला चिकित्सालय, सीतापुर।
मौलिक रचना।