राधे रानी का जन्म
कैसे राधे ने जन्म लिया ,क्या उनके बनवारी है।
इसके लिये एक सुनी हुई ,कथा बहुत ही प्यारी है।
कहते है गोलोक में कृष्ण ,राधा के संग रहते थे।
साथ मित्र श्रीदामा जी भी , गोलोक वास करते थे।
एक बार श्री कृष्ण वहाँ पर ,सखी विराजा सँ निकले।
राधा ने जब देखा उनको ,क्रोध बेन मुख से निकले।
देख क्रोध राधा रानी का,विराजा वहां से बह निकली।
नदी रूप में गई सखी तो,पर राधा जम कर उबली।
यह बात सखा श्रीदामा को,बिल्कुल पसंद नही आई।
उनके मित्र को भला बुरा, उनकी भी त्योरी चढ़ आई।
बोले वह क्रोधित हो कर के ,राधे तुमको शापित करता हूँ।
जाकर जन्मों धरा लोक में ,सजा मुकर्रर करता हूँ।
फिर क्या था राधे ने भी , श्रीदामा को शाप लूटा डाला।
जाकर बनो दैत्य तुम भी ,ओर शंखचूड़ बना डाला।
श्रीकृष्ण देखकर इन दोनों को,मन ही मन हैरान हुए।
कौन बनेगा क्या जाने ,थोड़ा सा परेशान हुए।
फिर बोले राधा से प्रिया ,तुम वर्षभानु दुलारी बनो।
ओर अयोनिजा ही तुम जन्मों , वहां भी मेरी प्यारी बनो।
इस प्रकार राधा ने फिर ,बिना गर्भ के जन्म लिया।
ओर कीर्ति वर्षभानु ने केवल ,वायु को जन्म दिया।
इस प्रकार राधा जी जन्मी,योगमाया से कन्या में।
कृष्ण अंश के अवतारी ,रायाण का मन आया कन्या पर।
कृष्ण राधा का अभिन्न प्यार ,ओर अभिन्न जुदाई भी।
पूर्व जन्म के शाप से शापित ,राधा और कन्हाई भी।
श्रीदामा भी शंखचूड़ ,राक्षस बनकर जन्म गए।
लेकिन राक्षस होकर भी वो ,बने सदा ही विष्णु प्रिय।
कलम घिसाई
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