राधेश्याम
राधे श्याम
हे राधे तू बड़भागिनी
मिला जो कान्हा का साथ
मुरली मोर मुकुट से अधिक
स्नेह रखते हैं त्रिलोकीनाथ ।
कभी रूठते कभी मनाते
ना करते दृष्टि से ।दूर
केश बनाते ,मेहंदी लगाते
प्रेम – पाश में रहते चूर ।
कभी दासी का रूप धार
राधा को छल जाते हैं
राधा के मोह मेंआकर
माधव चरण दबाते हैं ।
त्रिलोकीनाथ जग में आकर
कैसी लीला रचाते हैं
गाय चराते माक्खन चुराते
राधा संग रास रचाते हैं ।
निस्वार्थ प्रेम देख राधा का
ब्रह्मांड स्वामी रह गए दंग
अंतर्मन से लिपटे ऐसे
जैसे लिपटे तरु भुजंग ।
बस गया नैनो में श्याम सलोना
प्रेम रस की पिपासा है
जितना पाए उतनी प्यासी
बहती प्रीत विपाशा है ।
हे राधे प्रियतमा श्याम की
हमको भी श्याम मिला दे
तेरा श्याम तेरा ही प्रीतम
हमें बस एक झलक दिखला दे।
ललिता कश्यप सायर डोभा
जिला बिलासपुर (हि0 प्र0)