Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Aug 2022 · 5 min read

राधेय

एक लड़का था । उसकी उम्र करीब दस या बारह साल की थी । वह इधर कुछ दिनों से नितयप्राय सुबह दस बजे के आस पास पता नहीं कहां से आ कर मेरी क्लिनिक पर प्रगट हो कर बाहर पड़ी किसी खाली बैंच पर बैठ जाया करता था । वो आते समय रोज़ अपने हाथ में एक हरे पत्तल का दोना लिये होता था जो कभी समोसे , जलेबी , रस्गुल्ले तो कभी खस्ता कचौड़ी आदि जैसे व्यंजनों से भरा होता था । वो मेरे सामने बैठ कर अपनी दोनों टांगे हिला हिला कर उस नाश्ते को बड़े मज़े से खाता था । चूंकि बचपन में बैठे बैठे टांगे हिलाने पर मैं कई बार डांट खा चुका था अतः उसका यूं टांगे हिलाना मुझे खराब नहीं लगता था । उन दिनों वो हाल ही में खुली हमारी पहली व्यक्तिगत क्लिनिक थी अतः मरीज़ों की आवाजाही न के बराबर थी । खाली बैठे बैठे उस लड़के की गतिविधियों को देखते हुए मेरा कुछ समय कट जाता था तथा कुछ मन बहल जाता था । पर उसका ये रोज़ का लड्डू पेड़े मिठाई वाला नाश्ता मेरे लिए कौतूहल का विषय था । उसकी देह भाषा या उसके वस्त्रों से भी ऐसा आभास होता था कि कहीं से उसको इतना जेब खर्च तो नहीं ही मिलता हो गा जिससे वो इतना स्वादिष्ट और मंहगा नाश्ता रोज़ रोज़ उड़ा सके । आखिर अपनी हिचक पर विजय पाते हुए एक दिन मैंने उसके ताज़े हरे पत्तल के दोने में भरे नाश्ते की ओर इशारा करते हुए उससे पूंछ ही लिया –
” ये नाश्ता रोज़ रोज़ कहां से लाते हो ? ”
मेरी बात पर अपनी कंचे जैसी आंखों में खुशी भर कर चमकाते और रसगुल्ला चबाते हुए वह मटक कर बोला –
” मैं जब सुबह तैयार हो कर अपने घर से निकलता हूं तो रास्ते मे एक हलवाई की दुकान पड़ती है , जिसके यहां सुबह से ही ताज़ा नाश्ता करने वाले लोगों की भीड़ लगी रहती है , जो खाने के बाद पत्तल , दोने आदि को उसकी दुकान के आस पास फेंक देते हैं , जब मैं उसकी दुकान के सामने से गुज़रता हूं तो वो मुझे बुला कर ज़मीन पर फैले पत्तल आदि उठा कर पास में रखे कनस्तर में डालने के लिये कहता है । फिर मैं वहां फैले सारे पत्तल समेट कर कनस्तर में भर देता हूं और उस काम के बदले में वो मुझे ये चीजें खाने के लिये दे देता है , जिसे ले कर खाते खाते मैं यहां आ जाता हूं ।
उन्हीं दिनों एक करीब 35 वर्षीय महिला भी अपनी तमाम अविशिष्ट तकलीफों का पुलिंदा ले कर मुझे दिखाने आया करती थी । मुझे लगता था कि मेरे इलाज़ से उसे कोई विशेष फायदा नहीं हो रहा था , फिर भी आये दिन वो दिखाने आ जाती थी और कभी कभी कुछ देर खाली पड़ी बेंच पर अतिरिक्त समय गुज़ार कर चली जाती थी । कुछ दिन बाद मैंने देखा कि अक्सर वो रसगुल्ले वाला लड़का और ये मरीज़ा अक्सर एक ही बेंच पर आसपास बैठे होते थे । कभी कभी तो लगता था कि शायद एक दूसरे का खाली बैठ कर कर इंतज़ार कर रहे होते थे और एक दूसरे को देख कर के ही विदा होते थे । एक दिन मैंने देखा कि वो लड़का उस मरीज़ा के पल्लू को अपनी उंगली में बार बार लपेट कर खोल रहा था , फिर कुछ देर उसके पास बैठ कर ऐसे ही उसके पल्लू से खेलने के बाद वो उठ कर चला गया । उस दिन लड़के के जाने के बाद वो मरीज़ा मुझसे बोली –
” डॉ साहब , क्या आप इस लड़के को जानते हैं ”
मैंने कहा –
” नहीं ”
वो बोली –
” यह मेरा लड़का है ”
यह सुन कर स्तब्धता में मेरे मुंह से निकला –
” अरे ! ”
वो बोली –
” जब ये मेरे पेट में था तभी मेरे पति ने मुझे तलाक़ दे दिया था और हमारे यहां के रिवाज़ के मुताबिक इसके जन्म के साथ ही मेरे पेट से निकली इसकी थेड़ी और नाल ( placenta with chord = total productus of conception ) इसके जिस्म से लपेट कर इसे इसके बाप के घर भिजवा दिया गया था , इस तरह से जन्म लेते ही यह मुझसे अलग हो गया था ।
मैं सोचने लगा कैसी विवषता रही हो गी इस निष्ठुर नारी की जिसने ह्रदय पर पत्थर रख कर उस नवजात शिशु को अपने से विलग हो जाने दिया हो गा और उस सर्पणी समान जो अंडे से निकलते ही अपने बच्चों को खा जाती है अपने मात्रधर्म से च्युत हो कर आज वो किस मुंह से उसे अपना बच्चा कह रही है ? क्या विडम्बना है कि सामने पड़ कर भी ये एक दूसरे अनजान बने बैठे रहते हैं ?
मेरे सम्मुख मानो इस युग में कुंती और उसका पुत्र कर्ण पुनर्जन्म ले कर इसी धरा पर निर्वसित , निष्काषित हो कर समाज के नियमों में बंधे , लोकलाज के डर से छद्मावरण में एक दोहरा जीवन दोहरा रहे थे ।
महाभारत काल में कुंती अपने कुंवारे मातृत्त्व से जन्मे नवजात शिशु को टोकरे में धर , धारा में प्रवाहित कर जीवन भर पछताती रही पर मां की ससम्मान हर इक्षापूर्ती करते हुए भी कर्ण कभी कुंती के पास वापिस न लौटा । टूट कर गिरा फूल डाली से फिर कहां दुबारा उस डाली पर जुड़ता है । कृष्ण ने महाभारत में कर्ण को राधेय के नाम से संबोधित किया है क्योंकि सारथी अधिरथ की पत्नी का नाम राधा था जिसने कर्ण को अपना पुत्र मान कर पालन किया था । कर्ण उस युग में अपने बल , बुद्धि और कौशल से महान धनुर्धारी योद्धा , महादानी बना था ।
वर्तमान युग में इस बालक का जन्म एक ऐसे बुनकर समाज में हुआ था जिसमें रेशम की साड़ी बुनने का पीढ़ियों से चला आ रहा हुनर सीखता बचपन नलकी , ताना – बाना और हथकरघों से पटी संकरी गलियों के बीच खेल कर बड़ा होता है । यह सोच कर कि कुछ देर मेरे मेरे संम्पर्क में रह कर इस बालक का कुछ भला हो जाए गा , ये कुछ सीखे गा , कुछ शिक्षा के प्रति प्रेरित होगा मैंने उसे अपना पहला कम्पाउण्डर नियुक्त कर लिया था , पर उसकी सोच कुछ भिन्न थी । विषम परिस्थितियों में जन्म ले कर उपेक्षित किंतु आत्मनिर्भर जीवन जीने की कला में उसे महारथ सिद्ध था , अतः वो कब मेरे पास टिकने वाला था । इसके बाद कुछ दिन तक तो वो अपनी मनमरज़ी के मुताबिक़ मेरी क्लिनिक पर आ कर बैठ जाया करता था । एक दिन वो बिना किसी पूर्व घोषणा के पास के मोहल्लों की उन्हीं हथकरघों वाली संकरी गलियों में हमेशा के लिए खो गया और फिर कभी न लौटा । उसके जाने के कुछ समय बाद मेरा वो स्थान छूटा , शहर बदले और अस्पतालों के बदलने के साथ साथ मेरे व्यवसायिक जीवन काल में न जाने कितने कम्पाउण्डर , कितने वार्ड बॉयज कितनी नर्सिंग स्टाफ आदि बदले – वे आये – गये , मिले और छूट गये पर वो दोने में रसगुल्ले ले कर लड़का कभी न लौटा । अपनी स्मृतियों में मैंने उसे नाम दिया –
।। राधेय ।।

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 314 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जो धधक रहे हैं ,दिन - रात मेहनत की आग में
जो धधक रहे हैं ,दिन - रात मेहनत की आग में
Keshav kishor Kumar
प्रेम की नाव
प्रेम की नाव
Dr.Priya Soni Khare
जिंदगी में आपका वक्त आपका ये  भ्रम दूर करेगा  उसे आपको तकलीफ
जिंदगी में आपका वक्त आपका ये भ्रम दूर करेगा उसे आपको तकलीफ
पूर्वार्थ
मुरली की धू न...
मुरली की धू न...
पं अंजू पांडेय अश्रु
"कर्म का मर्म"
Dr. Kishan tandon kranti
हर घर में जब जले दियाली ।
हर घर में जब जले दियाली ।
Buddha Prakash
..
..
*प्रणय*
3069.*पूर्णिका*
3069.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
शीर्षक - हैं और था
शीर्षक - हैं और था
Neeraj Agarwal
दिनकर तुम शांत हो
दिनकर तुम शांत हो
भरत कुमार सोलंकी
परिवार तक उनकी उपेक्षा करता है
परिवार तक उनकी उपेक्षा करता है
gurudeenverma198
मंजिल की तलाश में
मंजिल की तलाश में
Praveen Sain
मांँ
मांँ
Neelam Sharma
ले हौसले बुलंद कर्म को पूरा कर,
ले हौसले बुलंद कर्म को पूरा कर,
Anamika Tiwari 'annpurna '
*एक बल्ब घर के बाहर भी, रोज जलाना अच्छा है (हिंदी गजल)*
*एक बल्ब घर के बाहर भी, रोज जलाना अच्छा है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
महाकाल का आंगन
महाकाल का आंगन
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
लंका दहन
लंका दहन
Paras Nath Jha
अपने हर
अपने हर
Dr fauzia Naseem shad
जिंदगी का एकाकीपन
जिंदगी का एकाकीपन
मनोज कर्ण
19, स्वतंत्रता दिवस
19, स्वतंत्रता दिवस
Dr .Shweta sood 'Madhu'
ईमानदार  बनना
ईमानदार बनना
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
मैं बनारस का बेटा हूँ मैं गुजरात का बेटा हूँ मैं गंगा का बेट
मैं बनारस का बेटा हूँ मैं गुजरात का बेटा हूँ मैं गंगा का बेट
शेखर सिंह
हंसें और हंसाएँ
हंसें और हंसाएँ
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
देखा
देखा
sushil sarna
क्या कहूं उस नियति को
क्या कहूं उस नियति को
Sonam Puneet Dubey
गले लगा लेना
गले लगा लेना
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
जिंदगी तेरे सफर में क्या-कुछ ना रह गया
जिंदगी तेरे सफर में क्या-कुछ ना रह गया
VINOD CHAUHAN
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
कवि दीपक बवेजा
तेरे जाने का गम मुझसे पूछो क्या है।
तेरे जाने का गम मुझसे पूछो क्या है।
Rj Anand Prajapati
कमली हुई तेरे प्यार की
कमली हुई तेरे प्यार की
Swami Ganganiya
Loading...