राधिका छंद
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राधिका छंद: 22 मात्रा, 13-9 पर यति, यति पूर्व पश्चात त्रिकल, आदि वाचिक द्विकल अनिवार्य ।
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घनश्याम ! सुना दो आज, मुरलिया प्यारी ।
हम मोर पंख पर प्रभो, जाँय बलिहारी ।।
तुम तीन लोक के नाथ, चुराया माखन ।
मन को तुम लेते चोर, कृष्ण मनमोहन ।।
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ये हरे-भरे सब वृक्ष, धरा के रक्षक ।
हम काटें इनको रोज, बने हैं भक्षक ।।
अब धैर्य गया है टूट, अवनि अकुलाई ।
हो गये प्रदूषित आज, वायु , जल भाई ।।
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भर गया पाप का घड़ा, टूटने वाला ।
प्याऊ सम देखो खुलीं, यहाँ मधुशाला ।।
पी-पी कर गिरते लोग, झूमते जाते ।
प्याले में जाने कौन, अमर फल पाते ।।
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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