राधिका छंद
– फागुन
#विधा – राधिका छंद
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यह फागुन का है मास, लगे मनभावन।
हर हृदय हुआ है मस्त, छटा है पावन।।
अब गोरी खेले फाग, रंग बरसाये।
है पीट रही वो चंग, खूब हर्षाये।।
सब लोग हुये है मग्न, फाग खेलन में।
है मस्त मवाली आज, भंग घोटन में।।
मदमस्त मगन सब आज ,नाच दिखलायें।
अब बरसे चहुँदिश रंग, सभी बरसायें।।
हुड़दंग मचा चहुँओर, लोग बौराये।
हैं भंग घोटते संग, नहीं शरमायें।।
अब बजे मृदंग व ढोल,मगन मन झूमे।
गा नाच रहे सब लोग, गली में घूमें।।
सत्यभामा संग कृष्ण, फाग मथुरा में।
हैं मित्रविन्दा भी मग्न, आज ससुरा में।।
बजे मृदंग अरू ढोल, मस्त बरसाने।
राधा जी लेकर रंग, चलीं बरसाने।।
…….स्वरचित, स्वप्रमाणित
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
शब्द उनके अर्थ
ससुरा – ससुराल
अरू – और
चंग – नगाड़े जैसा बड़ा वाद्ययंत्र
मित्रविन्दा – श्री कृष्ण की धर्मपत्नी
चहुँदिश – सभी दिशाओं में, हर ओर