राधा कृष्ण
राधा कृष्ण
————–
मिलने चली हैं अपने कान्हा से
राधा रानी हुई अनमानी से
मनमोहन फिर मिले न मिले
अभी का ये पल सुकून पा ले।।1।।
अटूट सा नाता बना था राधे
कन्हैया के बिना कैसे रह पाते
व्याकुल सी घड़ी नजदीक आ गई
राधा – कृष्ण से मिलने जो गई।।2।।
यमुना ने भी अपनी लहरे बढ़ाई
कहें जैसे केशव न हो ये जुदाई
समय जो उस पल निहार रहा था
वो भी क्षणभर ठहर सा गया था।।3।।
राधा के आंसू मानो प्रतीत रहे थे
मानो यमुना के बांध तोड़ रहे थे
हरी हरी कह के राधा ने पुकारा
बंसीधर होठो पे चीर हँसी लाया।।4।।
बोली अधीरता में राधा रानी
केशव आपने मेरे मन की न जानी
इतना जाना जरूरी क्या आपका
क्या ओछा पड़ गया प्यार राधे का।।5।।
व्याकुलता जो मन में थी सारी
आंखों के रास्ते उमड़ पड़ी भारी
नजदीक आए स्मितहासी कन्हैया
पोंछ डाली आंखे दुशेले से मैय्या।।6।।
गहन स्वरों में कुछ ऐसे सच बोले
राधाके मन में शब्दब्रह्म पिरोए
इन मोह के धागों में रुकना न राधे
नाता जन्म जन्मांतर का शरीर न बांधे।।7।।
कान्हा के होठों से शब्दब्रह्म जो सुने
राधारानी के होश नहीं थे ठिकाने
क्या मेरा तुम्हारा जीवनसाथी होना
ये नहीं अपने प्रेम का अंतिम ठिकाना।।8।।
युगों युगों से हम मिलते आए
हर युगांत में एकतत्व में समाए
बंधनों में हमें कोई बांध न पाए
धर्म कर्तव्य को हम प्रेम ऊपर लाए।।9।।
समझो मेरी तुम राधा रानी
अपनी ही ये जीवन कहानी
धर्म कर्तव्य हम दोनो लेके आए
प्रेम कर्तव्य के आड़े ना आए।।10।।
राधारानी स्मित हास्य हुई
कान्हा के और निकट लाई
बोली कान्हा आखरी ये मिलना
शरीर बाद सिर्फ आत्मरूप में समाना।।11।।
करू एक अर्ज केशव से कही
धुन अपनी मुरली पे बजाओ सही
कान्हा ने निकाली अपनी बांसुरी
“मधुवंती” की धुन ये छेड़ डाली।।12।।
यमुना मानो स्तब्ध हो गई
गईया खाना छोड़ के आई
पंछी विहारना भूल से गए
प्रेम भक्ति के रस में आनंदी हुए।।13।।
कल से आसमां नहीं सुनेगा
पावा मोहन का नहीं बजेगा
वो शाम गमगीन सी हुई
राधा कृष्ण के सुरों में समाई।।14।।
मंदार गांगल “मानस”