राधा कृष्ण सा प्रेम
??राधा कृष्ण सा प्रेम??
अमर प्रेम हे!तेरा मेरा, जैसे धूप छांव का फेरा।
जनम-जनम चलता रहे,ऐसा ही सिलसिला तेरा मेरा।।
कभी कृष्ण तो कभी मीरा,
कभी राधा सा हो प्रेम घनेरा।
मेरे जीवन की बगिया से,
हट जाएं घनघोर अंधेरा।।
धरा में के प्रेम के पुष्पों से,
लताएं लहर लहर कर डोले।
मिलने तरसे रसपान को,
गुनगुंजन कर बोलें।।
मुझे अपने हर गम दर्द का,
हमराज़ बना लो कान्हा।
सपनों में नहीं तो,
दिल के ख्वाबों में सजा लो कान्हा।।
मेरीजिंदगी में चांदनी बनकर,
मुझको अपना चांद बना लो।
मेरी जिंदगी में अपनी चाहत का रंग भर के,
मुझको अपने होठों की बंसी बना लो।।
कृष्ण प्रेम में दीवानी,
हो गई मीरा बावरी।
दर-दर भटकी कृष्ण विरह में,
रटते रटते कान्हा,
बिता दी उमरिया सारी!!!!!
सुषमा सिंह *उर्मि,,