राधाकृष्ण मुक्तक
इस ज़िन्दगी की आशा तुम्हे माना है।
हृदय की अभिलाषा तुम्हे माना है।
मेरी चाहतों से तुम हो ख़फ़ा क्यों कहो,,
प्रेम की परिभाषा तुम्हे माना है।।
ख़ुद को राधा मैं कान्हा तुम्हे माना है।
राह देखती तुम्हारी हूँ मैं यूँ सदा,,
ख्वाबों की जिज्ञासा तुम्हे माना है।।
……..#शिल्पी सिंह