// रात //
ये रात भी क्या
कुछ दे जाती है
थके हुए इंसान को
प्यारी नींद सुलाती है।
चिंताओ के बोझ से
भय मुक्त करवाती है
ये रात भी क्या
कुछ दे जाती है।
ले जाकर दूर थकान को
सुकून पास ले आती है।
बाँध के अपने पल्लू में
ये कल के लिए
एक नया जुनून साथ
ले लाती है।
शांत भाव से
बैठ कर कुछ
विचरने का अवसर
दे जाती है।
ये रात भी क्या
कुछ दे जाती है।
ख़ुद कटती है तन्हा
तन्हा सी
सबको हर रोज़
अपनों से मिलवाती है।
ये रात भी क्या कुछ
दे जाती है।
कभी कभी तो उन
यादों में ले जाती है
जिसकी हर घड़ी ह्दय को
शोक सागर मे डुबा जाती है।