रात…
कोई ख़्वाहिश सी साथ चलती है
रात एक अजनबी सी गुजरती है…
मैं ताकती रहती हूँ राह उसकी
ज़िन्दगी कब, कहाँ हर वक्त ठहरती हैं…
कई मंजर आँखों में तैर जाते हैं
उनके आने से उफ़, जाने से आह निकलती है…
ज़िन्दगी करके देख तू दोस्ती मुझसे
बड़ी मुश्किलों से ऐसी पेशकश मिलती हैं…
ना आरज़ू रख तमन्नाओं की ‘अर्पिता’
ये हसरतें तो रेत सी फिसलती है..
-✍️ देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
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