रात हाथों में मेंहदी लगाती रही
मेरी क़िस्मत मुझे आज़माती रही
रंज देती रही दिल दुखाती रही
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ख़्वाब था जो कि आँखों में ठहरा रहा
नींद आती रही नींद जाती रही
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फिर जो देखा तो ये दिल ग़नी हो गया
आँख अश्कों के मोती लुटाती रही
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इक नज़र बेरहम थी सुकूं खा गई
इक कली दिल की थी खिलखिलाती रही
़़़़़़़़़़़़़़़़
चाँद पहलू से उठकर चला भी गया
रात हाथों मे मेंहदी लगाती रही
़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़
शाखे गुल बारहा मेरे इसरार पर
सर को अपने नफ़ी में हिलाती रही
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नीलोफर नूर