रात दिन तपी गम में पर नहीं थकी हूँ मैं
रात दिन जली गम में पर तपी नहीं हूँ मैं
आयें मुश्किलें कितनी हारती नहीं हूँ मैं
मान लोगे इक दिन तुम बात में मेरी है दम
करके ही दिखाती हूँ बोलती नहीं हूँ मैं
लड़खड़ा गई हूँ कुछ आँधियों से लड़ लड़ कर
पर धुआँ अभी बाकी है बुझी नहीं हूँ मैं
जानता है दिल मेरा मोल क्या है रिश्तों का
हार जाती हूँ इनमें जीतती नहीं हूँ मैं
देखिये रही मुझको वक़्त की कमी कितनी
आज तक भी अपने से ही मिली नहीं हूँ मैं
माना भावनाओं के तुम बड़े समंदर हो
पर समझ लो गहरी भी कम नदी नहीं हूँ मैं
ज़िन्दगी में खुशियाँ हो या गमों की बारिश हो
‘अर्चना’ कभी रब की भूलती नहीं हूँ मैं
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27-11-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद