रात गज़ब थी वो सावन की
22 22 22 22
रात ग़ज़ब थी वो सावन की
लूट गई नज़रे रहजन की
बूंद पड़ी उसके तन पर तो
आग लगी उसपे जौबन की
बादल गरजे बिजली चमके
आस लगा बैठी साजन की
नाच रही मदहोश गली में
राधा भीग रही मोहन की
फैल गया इतना सन्नाटा
आवाज़ सुनाई दी धडकन की
गूँज रही थी धुन कानों में
उसकी पायल की छन छन की
दूर हुए और मिलना पाए
मन में रह गई बातें मन की