रात गहरी हो रही है
चाँदनी अब सो रही है
रात गहरी हो रही है
हर ख़ुशी क्यों मुझसे रूठी
दूर बैठी सो रही है
मौत सिरहाने दिखे क्यों
ज़िन्दगी अब खो रही है
कल तलक तो फूल बांटे
कांटे अब क्यों बो रही है
दूर तक दिखता नहीं कुछ
रौशनी कम हो रही है
आँसुओं में भीगती ये
रात धुंधली हो रही है
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