रात क्या है?
रात जुगनू की बेला है;
जिसकी जगमगाहट से ज़मीन पर तारे दिख जाए,
रात आनंदोत्सव की आभा है;
जिसकी दमक से अमावस विलीन हो जाए,
रात सुकून कि चादर है;
जिसके ओढ़ने से व्यक्ति यंत्रणा भूल जाए,
रात मन की मनोरम अवस्था है;
जिसकी कोमलता; स्पर्श से संकुचित हो जाए,
रात ख़ूबसूरत लम्हा है;
जिसकी ख़ूबसूरती अश्क़ मिटा जाए,
रात रेगिस्तान की रेत है;
जो बंद मुट्ठी से भी फिसल जाए,
रात ठंडी हवा का झोंका है;
जो शरीर के कण-कण को पिरोए;
रात सावन की रिमझिम बूंदें हैं;
जिसके फव्वारे से अंतःकरण तृप्त हो जाए,
रात नदी का किनारा है;
जिसकी निर्मलता से मन मस्तिक उत्कृष्ट हो जाए,
रात मोगरे की डाली है;
जिसकी खुशबू से लोग सम्मोहित हो जाए,
रात नवेली दुल्हन की घुंघट है;
जिसके उठने से चांदनी भी झेंप जाए,
रात आंखों की वो तबस्सुम है;
जिसकी खिलखिलाहट से प्रीतम अनुरक्त हो जाए,
रात चंद्रमा की वह दाग है;
जिसके लगने से स्त्री स्वाभिमान कलंकित
और पुरुषत्व दर्पित हो जाए ।
“मौलिक एवं स्वरचित”
स्तुति