रात के ॲंधेरे में किसी ने वार किया !
रात के ॲंधेरे में किसी ने वार किया !
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रात के ॲंधेरे में किसी ने वार किया !
पीठ के पीछे से वो कड़ा प्रहार किया !
सच में जीना मेरा उसने दुष्वार किया !
ना जाने क्यों, वो घिनौना कार्य किया !!
क्या मिला उसे ऐसी हरकतें करके !
किसी की भी चन्द खुशियाॅं छीनके !
लोग अपने निहित स्वार्थों के चलते !
औरों के थाली की रोटी तक छीनते !!
उन्हें क्या पता, दिल पे किसी के क्या बीतती !
ऐसे लोगों को तो सदा, बस अपनी ही सूझती !
उन्हें तो बस, खुद के साॅंस की ही चिंता होती !
भूलकर भी किसी की भलाई न उन्हें सूझती !!
आगे बढ़ने के लिए खुद वे कभी कुछ भी करेंगे !
औरों के लिए तो सदैव लक्ष्मण रेखा ही खींचेंगे !
खुद के अंदर तनिक भी न कभी झाॅंककर देखेंगे!
अपनी गलती को झूठी दलील से सच ही कहेंगे !!
कोई जब उनके रास्ते चलेंगे तो हज़ार प्रश्न पूछेंगे !
अटपटे सवालों के प्रहार से अधमरा तक कर देंगे !
पर कुछ भी हो जाए, तनिक भी दया दृष्टि न रखेंगे !
कभी – कभी दिखावा हेतु झूठी तसल्ली वे दे देंगे !!
पर ख़ास-ख़ास मौक़े पर वे तनिक भी नहीं बख्शेंगे!
मौक़े की तलाश में सदा दो दो हाथ को तैयार रहेंगे!
दिन के उजाले में जब वे कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे !
तब रात के ॲंधेरे में ही चुपके से वार कर जाएंगे !
पीठ के पीछे से वो बड़ा तगड़ा प्रहार कर जाएंगे !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 18 सितंबर, 2021.
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