रात के मुसाफिर
रात के मुसाफिर,
दिन में कहाँ जायेंगे।
जो निकले वो घर से,
तो धूप में जल जायेंगे।
रात के मुसाफिर,
दिन में कहाँ जायेंगे।
ये गर्मी की तपिश,
सुर्ख हवाओं का झोंका।
बाहर जाने से इसने,
हर किसी को है रोका।
झुलसने वाली धूप,
जलाने वाली धूप।
सुबह से है निकली,
बदल देगी रूप।
हर तरफ है फैली,
बस इसे ही पाएंगे।
रात के मुसाफिर,
दिन में कहाँ जायेंगे।
बगिया और बगीचा,
नहर और तालाब।
इस गर्मी में देखो,
सब हो रहे ख़राब।
सड़कें, गलियां और दुकान,
सब दिन में सूनसान।
गर्मी से छिपकर हैं बैठे,
सब अपने अपने मकान।
जब जायेगा ये सूरज,
वो तभी बाहर आएंगे।
रात के मुसाफिर,
दिन में कहाँ जायेंगे।