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21 Jul 2024 · 1 min read

रात अंजान है

राहें वीरान हैं
रात अंजान हैं
कहाँ तक सफ़र
हर तरफ़ बियाबान है

अजनबी भी नहीं
मिले भी नहीं
रिश्तों में नहीं कोई झंकार है

जो बोलते थे बहुत
साथ चलने को
वक़्त आया तो करते इनकार हैं

डा राजीव “सागरी”

1 Like · 57 Views
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