रात अंजान है
राहें वीरान हैं
रात अंजान हैं
कहाँ तक सफ़र
हर तरफ़ बियाबान है
अजनबी भी नहीं
मिले भी नहीं
रिश्तों में नहीं कोई झंकार है
जो बोलते थे बहुत
साथ चलने को
वक़्त आया तो करते इनकार हैं
डा राजीव “सागरी”
राहें वीरान हैं
रात अंजान हैं
कहाँ तक सफ़र
हर तरफ़ बियाबान है
अजनबी भी नहीं
मिले भी नहीं
रिश्तों में नहीं कोई झंकार है
जो बोलते थे बहुत
साथ चलने को
वक़्त आया तो करते इनकार हैं
डा राजीव “सागरी”