रात्री काल
रात्रि काल
नव यौवना निशा डोले नभ में,
नित नूतन लिए तारक परिधान।
धारत जगमग धवल चुनरी,
इंदु बिंदु सजे भाल अभिमान।
पगली पवन लिए मधुर सुगंध,
रातरानी गई घुल मिल।
केश विन्यास अद्भुत कीन्हा,
चंद्रमा- चांदनी आकर मिलजुल।
नित नहलाया आके चंद्रिका।
नीहार सी धरा पर गिर रही।
लिपट -लिपट राका ज्योत्सना,
कौमुदी कलाधर फिर रही।
डोलत बन -ठन श्यामा सुंदरी,
कौन निहारे जग सो रहा।
हृदय कल्पित ले नित जाती,
यौवन नित -नित रो रहा।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश