राती घाटी
वह ऐसी राती घाटी है,
जहाँ मेवाड़ी सम्मान जगा।
संघर्ष भरे इस भारत का,
वो मूर्छित स्वाभिमान जगा।।
खमनौर युद्ध था बड़ा सबल,
वो राजपुतानी थाती थी।
अनिर्णायक जहाँ युद्ध हुआ,
वो माटी हल्दी घाटी थी।।
एक वीर दूजा महावीर,
दोनों भुजबल में थे समान।
एक मुगलियों का शहंशाह,
तो दूजा राणा ही महान।।
अश्वारोहि राणा की सेना,
वो चौगुना अरिदल भी रहा।
स्वाभिमान की रक्षा के लिये,
ना जाने कितना रक्त बहा।।
जिसका भाला किलो इक्यासी,
छाती का कवच बहत्तर था।
जब हल्दि की रणभेरी बजी,
तब सन् पन्द्रह सौ छिहतर था।।
दो असि, कवच, भाल, ढाल लिये,
जिसका वजन दु सौ आठ हुआ।
एक सौ दस महाराणा का,
वह रूSप बड़ा ही ठाट हुआ।।
आये समर बीच जब राणा,
हाथों में दो तलवार लिये।
हाहाकार सा मचने लगा,
राणा ने जिधर प्रहार किये।।
महादेव से गूँजा अम्बर,
वो महाकालिS ललकार उठी।
लगा कर रहे हैं शिव तांडव ,
जब राणा की तलवार उठी।।
रण बीच बहे गंगा जमुना,
देख शत्रु नराधम भाग उठे।
सुन चेतक की हुंकार प्रबल,
वो काल भी देख जाग उठे।।
थर-थर यह काँपे धरा गगन,
बिजली कड़की तलवारों से।
लगा हो गया अब महाप्रलय,
उन समर वीर के वारों से।।
सर यहाँ गिरा धड़ वहाँ गिरा,
न जाने कौन कब कहाँ गिरा।
चंचल चेतक पवन रूप धर,
खड़ा अरिदल जहाँ वहाँ गिरा।।
तेज रही बिजली के जैसी,
और वायु सा रफ़्तार रहा।
वह नीलवर्ण का घोड़ा था,
जो दुश्मन को ललकार रहा।।
चमक रहा जुगनू के जैसा,
अंधकार था नभ में छाया।
भागो भागो प्राण बचा लो,
चढ़ चेतक पर राणा आया।।
कई वर्षों की व्याकुलता ने,
रण में ऐसा संग्राम लड़ा।
बस चार घण्टे तक हुआ समर,
परिणाम जहाँ था वहीं खड़ा।।
अश्व जगत की मर्यादा का,
जिसने पहले सम्मान किया।
खुद की बलिS चढ़ाकर जिसने,
राणा को जीवन दान दिया।।
अमर हो गया महाप्रतापी,
जो भारत माँका था सपूत।
इतिहास स्वयं रचा जिसने,
वो स्वतंत्रता का अग्रदूत।।
माटी माथे चंदन कर के,
जिसने पहले था मान किया।
खुद की बलिS चढ़ाकर जिसने,
भारत को जीवन दान दिया।।
—-✍ सूरज राम आदित्य