रातभर तुम्हारे बारे मे लिखा मैने
उस रात नीद नही आ रही थी,
कोशिश थी भुला के तेरी यादे बिस्तर को गले लगा सो जाऊ
पर कम्बख़्त तू थी जो कहीं नही जा रही थी||
नीद की खातिर २ जाम लगाए,
सोचा कि सोने के बाद हमारी बातो को मै कागज पर उतारूँगा
एक कागज उठा सिरहाने रख कर मे सो गया||
रातभर तुम्हारे बारे मे लिखा मैने,
सुबह उठा तो थोड़ा परेशान हुआ क़ि गुफ्तगू के निशान गायब
शायद, शब्द सारी रात आँसुओ से धुलते रहे ||
वो गीले कागज मैने संजोए रखे.
क्योकि अगर कभी मिली तुम मुझको कागज दिखाकर के पूछना है
क्या बात करते थे हम? आज तो बता दो ||