राणा प्रताप जी के प्रति
राणा प्रतापजीके प्रति
मेवाड़ मुकुट क्षत्रिय गौरव,
हे वीर शिरोमणि कुलभूषण
साहस सम्बल प्रतिमूर्ति शिखर
जयवंत कंवर के स्वाभिमान ।
तुम उदय सिंह के वीर पुत्र
हल्दी घाटी के विजय गान ।
राना का वाना फौलादी
वच सके न अरि की कभी जान
कूद पड़े थे लेके रण में भाला कवच ढाल तलवार,
अरि दल कट कट गिरे चहूँ दिश
सहे न पाय दुय कुन्तल भार,
एक लाख की सेना डर गई
डरे मान सिंह आसफ खान
सौ सिर काटहिं राणा क्षण मैं,
चेतक भरहि चौकडी तान
एकलिंग की शपथ धरी
आजादी पै सब कुरबान
बादशाह कबहुँ नहीं मानहु
तुरकहि भेजउ अब शमशान
डोले व्याल तुर्क छाती पै
राणा तौ है काल समान
आस छोड़ के फिर अकबर
लाहौर नगर कीन्हो प्रस्थान ।
राणा चढ़ गए अरावली पै
नगर उदयपुर लिए बसाय
जंगल जंगल भटकहिं राणा
कंदमूल फल चखि चखि खांय
त्याग तपस्या लखि राणा की
भामा मन में रहे लजाय,
दानवीर वन करी प्रार्थना
हवन आहुति लेउ चढाय
सेना करी संगठित राणा
किला फ़तह कीन्हे प्रस्थान
सदियाँ याद रखें भारत की
हल्दी घाटी का जय गान ।
अनुराग दीक्षित