राज नहीं राजनीति हो अपना 🇮🇳
राज नहीं राजनीति हो अपना
🇮🇳 🇮🇳 🇮🇳
कुछ अक्षरों से बने इन
विषम शब्दों में गहराई है
असीम अथाह अकल्पनीय
माप नहीं एक परिणाम है।
जनता जनार्दन का अंगूठा
तकदीर तस्वीर बदलती है
सत्य निष्ठा सेवा कर्तव्यों को
कस कसौटी उतार कोने के
नर नारायण ऐहसास से
संविधान के अनुच्छेदों से
सच्ची राजनीति कराता जो
आज नहीं तो कल मेरा है
सत्ता आती जाती है स्थिर
जनता पग पग परीक्षा लेती
मन मनु भावो का संगम
निहित स्वार्थ परे रोटी कपड़ा
मकान सुरक्षा जो समझे वही
सफल राजनीतिज्ञ हो जाता
नहीं तो असफल राजनीति में
भावों की भग्नावशेष कहती
सिंहासन खाली करो की
जनता आती और जाती
राजनीति युगों से चल रही
शासन व्यवस्था होती रही
सत्य अहिंसा पर आधारित
राजनीति राज्य व्यवस्था हो
जनहित सेवा कल्याण आरोग्य
सुविधा उपलब्धता सुनिश्चिता
जन सपना इक अपना मान
यही संपन्न राज कहलाता
शासन एक मजबूरी नहीं
व्यवस्था एक जरूरी हो
सत्य न्याय अहिंसा कर्तव्य
निष्ठा जनता जनार्दन मान
सम्मान राज का पहचान
पहले राष्ट्रहित देश सुरक्षा
दूजा निज भागीदारी समझे
वही राम राज इक सपना है
हिंसा अत्याचार बेरोजगारी
कुशासकों का जमावड़ा ना हो
रोजगारी ईमानदारी वफ़ादारी
सत्य प्रेम सुविचार सद्भावना
नारी का सत्कार सरोकार हो
भावना का मान सम्मान जहां
विद्वानों का होता हो कद्र जहां
वह देश नहीं रामराज महादेश है
नर नारी का निडर भ्रमण हो
स्वच्छंद विचरण प्राणी का हो
सत्य अनुशासन आज्ञाकारी
ईमानदार कर्मठ सत्यवादी जन
भाषा विज्ञान भेष भूषा भरोसा
यह मेरा वह तेरा मैं तुम से दूर ज़हां
सबको सबसे इक नाता हो
सबका इक अधिकार अपना
आपस में द्वेष ईर्ष्या मतभेद
नहीं स्वदेश का प्यार भरा हो
निज अपनो की हो चाह नहीं
सहृदीय सेवा का सदा भाव हो
राम राज इक परिकल्पना हो
कर्तव्य परायण राजनीति हो
इसलिए राज नहीं राजनीति हो
कविः –
तारकेश्वर प्रसाद तरूण