‘राजूश्री’
‘राजूश्री’
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हॅंसानेवाले, ‘राजूश्री’ वास्तव में विदा हुए।
जग को , हॅंसा-हॅंसा कर सबसे जुदा हुए।
हास्यलोक के थे,वह कायस्थ कुलदीपक;
जिनके,शब्द के प्रकाश पे सब फिदा हुए।
समाई थी,उनके मुखवाणी में वीणापानी;
चित्रांश थे वह,सबके ही चहेते महाज्ञानी।
हास्यतीर से भरे, तरकश वाले वो अर्जुन;
हर शब्द कर्णप्रिय थे, मधुरतम थी वाणी।
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✍️पंकज कर्ण
……कटिहार।