राजा बेटा ( कहानी )
राजा बेटा
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आज शायद पहली बार शर्मा जी व उनकी धर्मपत्नी सावित्री देवी को अपने मंझले बेटे राजकुमार के होने पर इतना गर्व एवं खुशी महसूस हो रही थी । आज दोपहर ही तो तीन दिनो बाद शर्मा जी हस्पताल से डिस्चार्ज हो घर लॊटे थे। ऒर पलंग पर आराम की अवस्था मे बैठे हुये थे सावित्री देवी चाय बनाकर लाईं थी वही पीते पीते दोनो बतियाते हुये दुख सुख बाँट रहे थे ।
अभी तीन दिन पहले की ही बात है जब सुबह नॊ साढ़े नॊ बजे के लगभग चाय नाश्ते के उपरांत बरामदे मे बैठे अखबार पढ़ रहे थे ऒर उनकी धर्मपत्नी अंदर रसोईघर के कामकाजों मे व्यस्त थीं । तभी यकायक शर्मा जी के सीने मे दर्द उभरा, पहले पहल तो उन्होने सोचा कि गैस वैस के कारण होगा लेकिन दर्द की अधिकता के कारण निढाल होते हुये उनकी चीख निकल पडी, आवाज सुनकर सावित्री देवी बदहवास सी भागी चलीं आईं । पतिदेव को इस तरह सीने मे हाथ रखे हुये ऒर उनके सिर को कुर्सी से नीचे लटकते देख साथ ही दर्द की तीव्रता को शर्मा जी के चेहरे पर भाँप कर घबराहट के मारे तो उनकी साँसें ही फूल गईं, उन्हे तो कुछ समझ ही नही आ रहा था कि अचानक इन्हें क्या हो गया? अभी अभी तो बढिया थे इसके पहले भी कभी ऎसी तकलीफ मे शर्मा जी को देखा न था। राजू भी कुछ घर की जरूरत के सामान लाने नुक्कड़ तक गया था । शर्मा जी के सर को हाँथों पकड़कर सीधा करने की कोशिश मे सावित्री देवी रुआँसी होकर लाचारी महसूस कर रहीं थी, तभी भगवान का शुक्र है की राजू सामान लेकर वापस आ गया, पिता को इस हालत मे देखकर आनन फानन मे पडोसी की कार की मदद से नजदीकी प्रायवेट हस्पताल ले गया, हार्ट स्पेशलिस्ट डाँक्टर ने बिना समय गँवाये मामले की गंभीरता भांपते हुये उपचार शुरु कर दिया दो घण्टे बाद उनकी हालत मे सुधार होता देख डाँक्टर साहब ने खतरे से बाहर होने की घोषणा की तब जाकर सावित्री देवी व राजू को कुछ राहत महसूस हुई, जब डाँक्टर साब ने बताया कि यह तो हार्टाटैक था यदि सही समय पर इन्हे यहाँ न लाया गया होता तो कुछ भी हो सकता था। वो तो लाख लाख शुक्र है भगवान का जो राजू ने फुर्ती दिखाते हुये पिता को सही समय मे अस्पताल ले आया।
शर्मा जी की उम्र भी सत्तर पार कर चुकी व सावित्री देवी भी लगभग अड़सठ की हो चलीं हैं । उम्र के इस पडा़व मे राजू ही इन बूढ़ों की लाठी था । वापस घर आकर ऒर तबीयत को हल्का पाकर शर्मा जी काफी अच्छा महसूस कर रहे थे ऒर बातें कर रहे थे कि देखो यदि अपना राजु भी अपने साथ न होता तो न जाने उस दिन क्या हो गया होता, कैसे तीन दिनो से सेवा मे लगा है, पिता को समय पर दवा देने से लेकर हाथ पैर दबाने तक घर बाहर के आवश्यक कार्यों को भी निपटाते हुये । वैसे भी रोजाना राजू ही बाहर के सभी कामों को सम्हालता है ऒर घर पर माँ के साथ रोजमर्रा के कामो मे भी मदद करता रहता है किचन मे खाना बनाने से लेकर अगर काम वाली बाई न आये तो झाडू पोंछा बर्तन मँजवाने तक । इससे सावित्री देवी का काम भी काफी हल्का हो जाता है ऒर इस उम्र मे ज्यादा थकना नही पड़ता ।
ऎसा नही है कि शर्मा जी की एक ही संतान है, तीन बेटे ऒर एक बेटी मे राजू मँझला है । राजू यानी राजकुमार ने बी. काँम. तक पढाई की है तथा घर पर ही ट्यूशन पढा कर अपनी जरूरत का कमा लेता है, उसने विवाह भी नही किया । बडा़ बेटा इंजीनियर हो के पिछले पाँच सालों से अपनी पत्नी ओर दो साल के बेटे के साथ विदेश मे नॊकरी कर रहा है, दो साल मे एक बार आ पाता है उसका इरादा भी अब अमेरिका मे ही बसने का है। छोटे बेटे का भी अभी दो साल पूर्व विवाह हुआ है, उसने इंजीनियरिंग के साथ एम बी ए भी किया हुआ है, वह ऒर उसकी पत्नी भी दोनो किसी मल्टीनेशनल कंपनी मे जाँब करते हुये बंगलॊर मे है, दोनो को ही बढिया पैकेज मे सैलरी मिलती है। बेटी तो वैसे भी पराया धन ठहरी सो वो भी अपने पति के साथ पूना मे रहती है । कुल मिलाकर देखा जाय तो राजू को छोड़कर शर्मा जी की बाकी संतानें अच्छी तरह सैटल हो गईं है। ऒर शर्मा दंपति मँझले बेटे राजू के साथ जबलपुर के पास एक कस्बे मे निवास कर रहे हैं इस लिहाज से सभी से काफी ” दूरियाँ ” बन गईं हैं।
शर्मा जी को भी रिटायरमेंट के बाद से पेंशन मिलती है, आर्थिक दृष्टि से तो कोई परेशानी नही लेकिन पति पत्नी को बस राजू को लेकर चिंता सताये रहती कि इसका कोई जमा ठमा काम धंधा भी नही, शादी भी नही की उसने हम लोगों के न रहने के बाद हमारे राजू का ध्यान कॊन रखेगा। जबकि माता पिता चाहते थे कि उनके सामने राजू के लिये भी बहू आ जाती तो निश्चिंतता होती परंतु उसे शादी के लिये कहने पर बाद मे करूंगा कह के टाल जाता
चूंकि राजू अपनी सोच के अनुसार नही चाहता था कि इस तरह जो वह अपने माता पिता की सेवा कर पा रहा है, उनके छोटे मोटे कामो मे भी सहारा बनता है उससे वंचित रहना पडे, क्योकि सास बहू के बीच तालमेल बने न बने ऒर फिर माँ की कितनी इच्छा थी बडे भैया की शादी के पहले कि घर मे बहू आयेगी
तो बुढापे मे उन्हे भी कोई चाय बनाकर देने वाला तो होगा, बहू के रहने से घर मे रॊनक बनी रहेगी ऒर जब नाती नातिन होंगे तो उनकी धमाचोकडी से तो घर खिल उठेगा । विवाह तो दोनो भाइयों का हुआ परंतु इन सुखों के आनन्द की जो कल्पना थी माँ बाबूजी कि वो पूरी न हो सकी। फिर आजकल आने वाली लडकियाँ भी काफी पढी लिखी होती हैं साथ ही जाँब करने की भी ख्वाहिश रखती हैं फिर ऎसी स्थिति मे मेरे विवाह कर लेने से माता पिता को कॊन सा सुख मिल जायेगा बल्कि जो आज उनके साथ रहकर आत्मिक आनंद का अनुभव होता है संभावना है कि उससे भी हाथ धोना पडे क्योकि शादी के बाद तो लड़के की हालत चकरघिन्नी हो जाती है, माता पिता की सुने तो पत्नी नाराज ऒर जो पत्नी की सुनो तो फिर……..।खैर राजू तो ये सोचकर मस्ती मे रहता था कि आखिर दॊनो भाइयों की शादी हो जाने से उनकी बहू लाने की इच्छा तो पूरी हो चुकी ऒर बडे भाई के यहाँ भगवान ने सुंदर भतीजा भी दे दिया है जिससे उनकी इच्छाओं की पूर्ति तो हो ही गई है।
अब तक चाय भी खत्म हो चुकी थी ऒर सावित्री देवी को रात्रि के भोजन की तैयारी मे रोज की तरह लगने की जल्दी थी बस राह देख रहीं थी जो सब्जी लेने बजार गया हुआ था।
दोनो मन ही मन सोचे जा रहे थे कि भगवान का किया भी ठीक ही होता है। इन दिनो मे राजू की मोजूदगी भगवान के दिये किसी बडे वरदान से कम नही लग रही थी। जबकि इससे पहले लोगों के पूछने पर उन्हे बताते हुये बड़े गर्व का अनुभव होता था कि बडा़ बेटा अमेरिका मे ऒर छोटा बेटा बंगलॊर मे बहुत बड़े पैकेज मे काम कर रहे हैं ऒर राजू के बारे मे बताने मे थोडा संकोच का अनुभव होता था। लेकिन आज अचानक ही धारणायें बदल चुकी थीं। दोनो के ही हृदय मे राजू के लिये गर्व के साथ अपार आनंद की लहरें हिलोरें मार रही थी। तभी दोनो हाथों मे फल फूल, सब्जियों, व जरूरत के अन्य सामानों के थैले लिये राजू आ गया, आते ही माँ से पूछा – बाबूजी ने दवा ले ली थी? तभी सावित्री देवी एवं शर्मा जी के मुँह से एक साथ निकल पडा़ – आ गया राजा बेटा !
भावपूर्ण वातावरण का असर था कि तीनों की आँख के कोर नम हो चुके थे ।
सावित्री देवी किचन मे चली गई , राजू अपने कमरे मे जाकर कुछ पढ़ने लगा ऒर शर्मा जी आँखें बन्द कर थोडा आराम पाने लेट रहे । पर एक विचार उन्हे बार बार दुखी कर रहा था कि चलो हमारे सहारे के लिये तो राजू है लेकिन आजकल ज्यादातर बच्चे पढ लिखकर “बडे पैकेज” मे बाहर “सैटल” हो जाते हैं इस स्थिति मे उन वृद्ध दंपतियों का अकेलेपन मे क्या हाल होता होगा जिन्होने कितने ही सपने बुनते हुऎ बच्चों को पढा लिखाने बडा किया ।इस तरह बच्चों की उपलब्धियों पर प्रसन्न्ता तो स्वाभाविक है ! परन्तु……
गीतेश दुबे